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________________ 14 न्यायकुमुदचन्द्र जब अन्य अनेक प्रमाणोंसे प्रभाचन्द्रका समय करीब करीब भोजदेव और जयसिंहके राज्यकाल तक पहुँचता है तब इन प्रशस्तिवाक्योंको टिप्पणकारकृत या किसी पीछे होनेवाले व्यक्तिकी करतूत कहकर नहीं टाला जा सकता। मेरा यह विश्वास है कि 'श्री भोजदेवराज्ये' या 'श्रीजयसिंहदेवराज्ये' प्रशस्तियाँ सर्वप्रथम प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र के रचयिता प्रभाचन्द्रने ही बनाई हैं / और जिन जिन ग्रन्थोंमें ये प्रशस्तियाँ पाई जाती हैं वे प्रसिद्ध तकग्रन्थकार प्रभाचन्द्र के ही ग्रन्थ होने चाहिए। २-यापनीयसंघाग्रणी शाकटायनाचार्यने शाकटायन व्याकरण और अमोघवृत्तिके सिवाय केवलिभुक्ति और स्त्रीमुक्ति प्रकरण लिखे हैं। शाकटायनने अमोघवृत्ति, महाराज अमोघवर्षके राज्यकाल (ई० 814 से 877 ) में रची थी। आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्दमें शाकटायनके इन दोनों प्रकरणोंका खंडन आनुपूर्वीसे किया है / न्यायकुमुदचन्द्रमें स्त्रीमुक्तिपकरणसे एक कारिका भी उद्धृत की है। अतः प्रभाचन्द्रका समय ई० 100 से पहिले नहीं माना जा सकता। ३-सिद्धसेनदिवाकरके न्यायावतारपर सिद्धर्षिगणिकी एक वृत्ति उपलब्ध है। हम 'सिद्धर्षि और प्रभाचन्द्र' की तुलना में बता आए हैं कि प्रभाचन्द्रने न्यायावतारके साथ ही साथ इस वृत्तिको मी देखा है / सिद्धर्षिने ई० 106 में अपनी उपमितिभवप्रपश्चाकथा बनाई थी। अतः न्यायावतारवृत्तिके द्रष्टा प्रभाचन्द्रका समय सन् 210 के पहिले नहीं माना जा सकता। ४-भासर्वज्ञका न्यायसार ग्रन्थ उपलब्ध है। कहा जाता है कि इसपर भासर्वज्ञकी स्वोपज्ञ न्यायभूषण नामकी वृत्ति थी। इस वृत्तिके नामसे उत्तरकालमें इनकी भी 'भूषण' रूपमें प्रसिद्धि हो गई थी। न्यायलीलावतीकारके कथनसे ज्ञात होता है कि भूषण क्रियाको संयोग रूप मानते थे। प्रभाचन्द्रने न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 282 ) में भासर्वज्ञके इस मतका खंडन किया है / प्रमेयकमलमार्तण्डके छठवें अध्यायमें जिन विशेष्यासिद्ध आदि हेत्वाभासोंका निरूपण है वे सब न्यायसारसे ही लिए गए हैं। स्व० डॉ० शतीशचन्द्र विद्याभूषण इनका समय ई० 600 के लगभग मानते हैं / अतः प्रभाचन्द्रका समय भी ई० 100 के बादही होना चाहिए। ५-आ० देवसेनने अपने दर्शनसार ग्रंथ (रचनासमय 160 वि० 133 ई० ) के बाद भावसंग्रह ग्रंथ बनाया है। इसकी रचना संभवतः सन् 140 के आसपास हुई होगी। इसकी एक 'नोकम्मकम्महारो' गाथा प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्रमें उद्धृत है / यदि यह गाथा स्वयं देवसेनकी है तो प्रभा चन्द्रका समय सन् 140 के बाद होना चाहिए। ६-आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमल और न्यायकुमुद 0 बनानेके बाद शब्दाम्भोजभास्कर नामका जैनेन्द्रन्यास रचा था। यह न्यास जैनेन्द्रमहावृत्तिके बाद इसीके आधारसे बनाया गया है। मैं 'अभयनन्दि और प्रभाचन्द्र' की तुलना (पृ०३३) करते हुए लिख आया हूँ कि नेमिचन्द्रसिद्धान्त 1 देखो न्यायकुमुदचन्द्र पृ० 282 टि० 5 / 2 न्यायसार प्रस्तावना पृ० 5 /
SR No.004327
Book TitleNyayakumudchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1941
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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