________________ 6. न्यायकुमुदचन्द्रनिर्दिष्टा न्यायाः। अन्धसर्पबिलप्रवेशन्याय 248 / 27 | लाभमिच्छतो मूलोच्छेद: 309 / 2 अन्नं वै प्राणाः 35 / 6 वीचीतरङ्गन्याय 245 / 6; 246 / 12, 249 / 12 अर्धजरतीयन्याय 168020 सरागा अपि वीतरागवच्चेष्टन्ते 851110 इतो व्याघ्र इतस्तटी 837 / 21 सलिलसमीरणन्याय 5867 गौर्वाहीक: 559 / 17; 5601 सापल्यन्याय 685 / 13 न हि दृष्टेऽनुपपत्तिर्नाम - 1910 हस्तिप्रतिहस्तिन्याय नहि सुशिक्षितोऽपि खड्गः आत्मानं छिनत्ति, सुशिक्षितोऽपि वा वटुः स्वस्कन्धमारोहति 182 / 15 | 17. न्यायकुमुदचन्द्रगतानाम् ऐतिहासिक-भौगोलिकनाम्नां सूचिः। ऋषभादि कालासुर कौशाम्बी नन्दिसंघ नालिकेरद्वीप . प्रजापति बाहुबलिप्रभृति 857 / 27 | मालव 726 / 9 मेदि . 512 / 5 रावणशङ्खचक्रवर्त्यादि 88121 रावणादि 179 / 1, 410 / 12 726 / 4 | वीर 858 / 10 वृन्दावन 5 / 8,12 सत्यभामा 871 / 12 सीता 49 / 14 | सुराष्ट्र 259 / 3 80825 535 / 6 808 / 26 726 / 2,9 653 / 16, 654312 8288 739 / 3 869 / 12; 87621 259 / 3 भरतप्रभृतिचक्रबतिन् महावीर 8. न्यायकुमुदचन्द्रनिर्दिष्टा ग्रन्था ग्रन्थकृतश्च / अकलक 112, 21, 402 / 8; 521111; | कपिलादिवचन 605 / 2653116654|11,88015 | काण्वमाध्यन्दिनतैत्तिरीयादिशाखाभेद अकलकूदेव 604117 | कादम्बर्यादि अक्षपाद 309 / 13 कुमारिल अनन्तवीर्य 122, 605 / 3 | कुमुदेन्दु अभिनवनैयायिक 497 / 14 गौतम आचार्य 2 / 10, 673120 जरनैयायिक आचार्गीयं वचः 673118 जैमिनि उपनिषद्वाक्य 14716 जैमिन्यादि कणाद 309 / 12 | ठकशास्त्र कण्वादि 726 / 13 | तत्त्वार्थभाष्यादि कपिलमहर्षिप्रभृति 111 / 12 | तत्त्वोपप्लववादिन् 60123 72610 72715,8 505 / 12 604115 8289 337 / 1 505 / 11 9412,3 - 59411 646 / 15 - 339/4.