________________ 7. 117. 28 ] द्रोणपर्व [7. 117. 56 परस्परमयुध्येतां वारणाविव यूथपौ // 28 रणे केतुं सर्वधनुर्धराणाम् / / 42 तावदीपेण कालेन ब्रह्मलोकपुरस्कृतौ। प्रविष्टो भारती सेनां तव पाण्डव पृष्ठतः / जिगीषन्तौ परं स्थानमन्योन्यमभिजघ्नतुः // 29 योधितश्च महावीर्यैः सर्वैर्भारत भारतैः // 43 सात्यकिः सौमदत्तिश्च शरवृष्टया परस्परम् / परिश्रान्तो युधां श्रेष्ठः संप्राप्तो भूरिदक्षिणम् / इष्टवद्धार्तराष्ट्राणां पश्यतामभ्यवर्षताम् // 30 युद्धकाङ्किणमायान्तं नैतत्सममिवार्जुन // 44 संप्रेक्षन्त जनास्तत्र युध्यमानौ युधां पती। ततो भूरिश्रवाः क्रुद्धः सात्यकिं युद्धदुर्मदम् / यूथपौ वाशिताहेतोः प्रयुद्धाविव कुञ्जरौ // 31 उद्यम्य न्यहनद्राजन्मत्तो मत्तमिव द्विपम् / / 45 अन्योन्यस्य हयान्हत्वा धनुषी विनिकृत्य च / रथस्थयोर्द्वयोर्युद्धे क्रुद्धयोर्योधमुख्ययोः / विरथावसियुद्धाय समेयातां महारणे // 32 केशवार्जुनयो राजन्समरे प्रेक्षमाणयोः // 46 आर्षभे चर्मणी चित्रे प्रगृह्य विपुले शुभे / अथ कृष्णो महाबाहुरर्जुनं प्रत्यभाषत / विकोशौ चाप्यसी कृत्वा समरे तो विचेरतुः // पश्य वृष्ण्यन्धकव्याघ्र सौमदत्तिवशं गतम् // 47 चरन्तौ विविधान्मार्गान्मण्डलानि च भागशः / परिश्रान्तं गतं भूमौ कृत्वा कर्म सुदुष्करम् / मुहुराजन्नतुः क्रुद्धावन्योन्यभरिमर्दनौ // 34 तवान्तेवासिनं शूरं पालयार्जुन सात्यकिम् // 48 सखगौ चित्रवर्माणौ सनिष्काङ्गदभूषणौ / न वशं यज्ञशीलस्य गच्छेदेष वरारिहन् / रणे रणोत्कटौ राजन्नन्योन्यं पर्यकर्षताम् / / 35 त्वत्कृते पुरुषव्याघ्र तदाशु क्रियतां विभो // 49 मुहूर्तमिव राजेन्द्र परिकृष्य परस्परम् / अथाब्रवीद्धृष्टमना वासुदेवं धनंजयः / पश्यतां सर्वसैन्यानां वीरावाश्वसतां पुनः // 36 पश्य वृष्णिप्रवीरेण क्रीडन्तं कुरुपुंगवम् / असिभ्यां चर्मणी शुभ्रे विपुले च शरावरे / महाद्विपेनेव वने मत्तेन हरियूथपम् // 50 निकृत्य पुरुषव्याघौ बाहुयुद्धं प्रचक्रतुः / / 37 हाहाकारो महानासीत्सैन्यानां भरतर्षभ / / व्यूढोरस्कौ दीर्घभुजौ नियुद्धकुशलावुभौ / यदुद्यम्य महाबाहुः सात्यकिं न्यहनद्भुवि // 51 बाहुभिः समसज्जेतामायसैः परिधैरिव / / 38 स सिंह इव मातङ्गं विकर्षन्भूरिदक्षिणः / तयोरासन्भुजाघाता निग्रहप्रग्रहौ तथा / व्यरोचत कुरुश्रेष्ठः सात्वतप्रवरं युधि // 52 शिक्षाबलसमुद्भूताः सर्वयोधप्रहर्षणाः // 39 अथ कोशाद्विनिष्कृष्य खड्गं भूरिश्रवा रणे / तयोर्तृवरयो राजन्समरे युध्यमानयोः / मूर्धजेषु निजग्राह पदा चोरस्यताडयत् // 53 भीमोऽभवन्महाशब्दो वज्रपर्वतयोरिव // 40 तथा तु परिकृष्यन्तं दृष्ट्वा सात्वतमाहवे / द्विपाविव विषाणाप्रैः शृङ्गैरिव महर्षभौ / वासुदेवस्ततो राजन्भूयोऽर्जुनमभाषत // 54 युयुधाते महात्मानौ कुरुसात्वतपुंगवौ // 41 पश्य वृष्ण्यन्धकव्याघ्रं सौमदत्तिवशं गतम् / क्षीणायुधे सात्वते युध्यमाने तव शिष्यं महाबाहो धनुष्यनवरं त्वया // 55 ततोऽब्रवीदर्जुनं वासुदेवः / असत्यो विक्रमः पार्थ यत्र भूरिश्रवा रणे। पश्यस्यैनं विरथं युध्यमानं विशेषयति वार्ष्णेयं सात्यकिं सत्यविक्रमम् // 56 म. भा. 191 - 1521 -