________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत जैनमिह धर्मचक्रं, तच्छायागर्भगं न पश्यन्ति / '-र-ल-क-स'(श)-ह-जा'-(या)-हि-गजाः 10 रक्षोऽग्नि"-सिंह दुष्ट-नृपाः // 23 // अनुवादः-अहीं (ऋषिमंडलयंत्रमां) श्री जिनेश्वर भगवंत संबंधी धर्मचक्र रहेलं छे / तेनी छाया5 निश्रारूप पंजरमा रहेनारने डाकिनी, राकिनी, लाकिनी, काकिनी, शाकिनी, हाकिनी, याकिनी, सर्प, हाथी, राक्षस, अग्नि, सिंह, दुष्ट अने राजा जोई शकता नथी // 23 // + 61. धर्मचक्रं-त्रिभुवनपति श्री तीर्थंकर परमात्मानुं ए महान धर्मशस्त्र छ। तेथी अचित्य प्रभावथी अनेक उपद्रवो शांत थाय छे / चक्रवर्तिना चक्रनी जेम ते परमात्मानी आगळ चाले छे। ते परमात्माना धर्मवरचातुरंतचक्रवर्तित्वने सूचवे छे। ऋषिमंडलयंत्र पोते ज चक्राकृति होवाथी चक्र छ। ते 10 चक्रने जे मनवडे धारण करे छे, ते सर्वत्र अपराजित बने छ। 62. तच्छायागर्भगं-जेम चक्रवर्तिना चक्ररत्नना कारणे तेना निश्रितो सुरक्षित होय छे, तेम ऋषिमंडलमा रहेल धर्मचक्रनी रक्षामां जे• मानसिक रीते उपस्थित थयो छे, तेने कोई पण उपद्रवकारक एवा दुष्टादि पीडा न करी शके। 63. न पश्यन्ति-तेने जोई शकता नथी। तेने डरावी शकता नथी / जेना उपर धर्मचक्रनी 15 छाया छे तेना उपर बीजा कोईनी दुष्ट दृष्टि पडी शकती नथी / 64. ड-र...नृपाः-डाकिनी आदि देवीओ, सर्प, हाथी, राक्षस, अग्नि, सिंह, दुष्टो अने राजाओ तेने डरावी शकता नथी। * सरखावो: एतन्मन्त्रप्रभयाऽऽक्रान्त-सूरिनिराऽतिशयसिद्धः। ड-र-ल-क-स(श)-ह-जा-(या)ऽहि-रिपुप्रभृतिभयात् संघरक्षाकृत् // 79 // -श्रीसिंहतिलकसूरिविरचितं “मन्त्रराजरहस्यम्" अर्थः-आ मंत्रना प्रभावथी आक्रान्त श्री सूरिभगवंत वाणी वडे अतिशय समृद्ध थईने डाकिनी आदिथी थता भयथी संघनी रक्षा करे छे। डाकिनी शाकिनी चण्डी याकिनी राकिनी तथा। लाकिनी नाकिनी सिद्धा सप्तधा शाकिनी स्मृता // 11 // एतेषां खलु ये दोषास्ते सर्वे यान्ति दूरतः। चिन्तामणिसुचक्रस्थ-पार्श्वनाथप्रसादतः // 12 // धर्मघोषसूरि-श्रीचिन्तामणिकल्पसार (जैनस्तोत्रसन्दोह पृष्ठ 36.) 30 देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा / देवदेव. मा मां हिंसन्तु पन्नगाः॥४७॥ . तयाऽऽच्छादितसर्वाङ्गमा मां हिनस्तु डाकिनी // 31 // देवदेव. मा मां हिंसन्तु हस्तिनः // 53 // देवदेव. मा मां हिनस्तु राकिनी // 33 // देवदेव. मा मां हिंसन्तु राक्षसाः // 71 // देवदेव. मा मां हिनस्तु लाकिनी // 34 // देवदेव० मा मां हिंसन्तु वह्नयः // 63 // देवदेव. मा मां हिनस्तु काकिनी // 35 // देवदेव० मा मां हिंसन्तु सिंहकाः // 51 // 35 देवदेव. मा मां हिनस्तु शाकिनी // 36 // देवदेव० मा मां हिंसन्तु दुर्जनाः // 59 // देवदेव. मा मां हिनस्तु हाकिनी // 37 // देवदेव० मा मां हिंसन्तु भूमिपाः // 75 // देवदेव० मा मां हिनस्तु याकिनी // 32 // -श्रीषिमण्डलस्तोत्रम् + आ श्लोकमां श्री ऋषिमण्डलयन्त्रनो महिमा दर्शावेल छ। 20 25.