________________ 35 विभाग] . आदौ सम्मेदरूपमाह.-सर्वतः संभेदः संश्लिष्टः संबद्धो वाऽहंकारेण सह ध्यायकस्य भेदः सम्मेदः / आत्मानं बीजमध्ये न्यस्तं चिन्तयेद्, एवं च ध्येय-ध्यायकयोः संश्लेषरूपः सम्बन्धरूपश्च मेदो भवति। ___ न च महामन्त्रस्य सकलार्थक्रियाकारित्वेन मन्त्रराजत्वान्मण्डल-वर्णादिमेदेनाऽऽकर्षण-स्तम्भमोहाद्यनेकार्थजनकत्वाद् गमनाऽऽगमनादिरूपत्वेन संमेदासंभवादनैकान्तिकत्वाल्लक्षणाभावो वाच्यः, यतस्तत्र 5 साध्यस्यात्मनोऽन्यत्रात्मीयात्मन इति विशेषणादिति / प्रथम संभेद प्रणिधान जणावे छे–'अहंकार'नी साथे ध्यातानो संश्लिष्ट अथवा संबद्ध एवो भेद ते 'संभेद' प्रणिधान, छे / अहीं अर्ह बीजमां स्वात्माना न्यास वडे चिंतन करवाथी ध्येय अने ध्यातानो संश्लेषरूप अने सम्बन्धरूप 'मेद' थाय छे। महामंत्र (अर्ह) सकलार्थक्रियाकारित्वना कारणे मन्त्रराज होवाथी मण्डल, वर्ण वगेरे प्रक्रारो वडे 10 आकर्षण, स्तम्भन, मोहन वगेरे अनेक प्रकारना अर्थोनो जनक होवाथी ते जे वखते गमन आगमन करे छे ते वखते संमेद संभवतो नथी; एटले संभेद प्रणिधाननुं लक्षण अनैकान्तिक (व्यभिचारि) थवाथी लक्षणनो अभाव छे एम न कहेवं / "कारण के स्तम्भनादि कार्योमा साध्यना आत्मानी साथे संमेद अने अन्यत्र (ते कार्यो न होय त्यारे) पोताना आत्मानी साथे संमेद होय छे," एवा अर्थमां पूर्वोक्त लक्षणमा 'आत्मनः' पदनी पूर्वे 'साध्यस्य ' अने 'आत्मीय' ए विशेषणो लेवानां छ।' 15 1 संभेद एटले चारे बाजु 'अहं' शब्दथी आत्माने वींटायेलो जोवो; अर्थात् पोताना आत्मानो 'अहँ 'नी मध्यमां न्यास करवो। अभेद एटले पोताना आत्मानु अरिहतरूपे ध्यान करवु / हवे प्रश्न ए छे के, कोईना वशीकरणनो प्रयोग करवो होय तो 'अर्ह' अक्षरथी पोताना आत्माने नहीं पण पारकाना आत्माने वींटायेलो जोवानो होय छे, अथवा तो 'अर्ह' अक्षरने बीजा माणस तरफ मोकलवानो होय छे, एटले ते वखते अर्ह अक्षर पोतानी पासेथी छूटो पडीने ज्यां बीजो माणस रहेतो होय त्यां पहोंचे छे, तेने वींटी 20 ले छे अने ए रीते तेना उपर वशीकरण-आकर्षण आदिनो प्रयोग कराय छ / आवा प्रसंगे 'अहं' नो पोताना आत्मा साथे संभेद एटले संश्लेष रहेतो नथी, कारणके ए छूटो पडीने जाय छे अने पाछो आवे छे। ए रीते गमनागमनवाळो मंत्र होवाथी संभेद एटले पोताना आत्माने वींटाईने रहेवापणानो नियम रहेतो नथी। 25 ए रीते अनियम थवाथी 'संभेद प्रणिधान 'नुं लक्षण व्यभिचारि बने छे, तेथी ते लक्षण असंगत छे, एवो शंकाकारनो आशय छ। आत्मानो न्यास केवी रीते करवो तेनो निर्देश करतुं चित्र सामे आपेल छे। तेमां वच्चेना स्थाने स्वात्माने खदेहाकारे स्थापवो। श्री सिद्धचक्र वगेरे यंत्रोमा 'ई' मां श्री जिनेंद्र परमात्मानो आवी ज रीते न्यास करेलो जोवामां आवे छे। ए संभेद प्रणिधान छ। योगशास्त्रना आठमा प्रकाशमां 'अर्ह' ना पदस्थादि ध्याननी प्रक्रिया बतावतां / 'भी' मा आत्मानो स्वदेहाकारे न्यास सूचित कयों छे। ए पण संभेद प्रणिधान छ /