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________________ ..परिशिष्ट 2 मायाबीजस्तुतिः 'स'वर्णपार्श्व ल-यमध्यसिद्धमधीश्व(स्व)रं भास्वरवर्णभासम् / खण्डेन्दुनादस्फुटबिन्दुयुक्तं, त्वां शक्तिबीजं (ज) प्रमनाः प्रणौमि // 1 // श्वेतं रक्तं तथा पीतं, नीलं ध्यानं चतुर्विधम् / विधिना ध्यायमानं च, फलं भवति नान्यथा // 2 // श्वेते मुक्तिर्भवेत् पुंसो, रक्ते वश्यं परं स्मृतम् / पीते लक्ष्मीर्भवत्येव, नीले च शत्रुमारणम् // 3 // मन्त्राः सहस्रशः सन्ति, शिवशक्तिनिवेदिताः। अन्यथा ते च विशेया, मायाबीजाप्रतो यथा // 4 // लक्षसंख्ये कृते जापे, दशांशेन तु होमयेत् / पृथ्वीपतित्वं जायेत, सत्यं सत्यं च नान्यथा // 5 // रणे राजकुले वह्नौ, दुर्ग-शस्त्रविसङ्कटे। शतमष्टोत्तरं जापं, कणवीर-सगुग्गुलम् // 6 // . जयमाप्नोति शत्रुभ्यः, पृथिवीपतिवल्लभः। अपुत्रो लभते पुत्रान् , सौभाग्यं दुर्भगो लमेत् // 7 // अष्टम्यां चतुर्दश्यां वा, पर्वणि ग्रहणेषु च / हूयते वाऽनले सम्यग्, नात्र कार्या विचारणा // 8 // अनुवाद प्रारंभिक मंगल जेनी पार्श्वमां 'स' वर्ण छे (एवो 'ह'), जे 'ल' अने 'य'ना मध्यमां सिद्ध (निष्ठित) छे (एवो ''), अंतमा 'ई' स्वरवाळा, देदीप्यमान वर्णनी कांतिवाळा, अर्धचंद्र(कला), नाद अने स्पष्ट एवा बिन्दुथी युक्त एवा हे शक्तिबीज ! ('ही' कार !) हुं तने उल्लासमेर (भावपूर्वक) स्तवं छु // 1 // वर्णोमां ध्यान अने तेनुं फळ __श्वेत, रक्त, पीत अने नील ए चार प्रकार, ध्यान छे अने ते विधिपूर्वक कराय तो इष्टफळ आपे 25 छे, अन्यथा (विधि विना) ते फळ आपतुं नथी // 2 // - श्वेतध्यानथी मुक्ति थाय छे, रक्तध्यानथी वशीकरण थाय छे, पीतध्यानथी लक्ष्मीनी प्राप्ति थाय छे अने नील ध्यानथी शत्रुनुं मारण थाय छे-एम (मन्त्रशास्त्रमा) कयुं छे // 3 // माहात्म्य शिव पार्वतीने कहेला तो हजारो मंत्रो छे; परंतु मायाबीजनी आगळ ते बधा कई ज नथी, 30 एम जाणवू // 4 // एक लाख जाप कर्या पछी (लाखना) दशमा भागे होम करवो / एम करवाथी राजवीपणुं मळे छे, ए खरेखर सत्य छे, खोटे नथी। युद्ध, राजकुल अने अग्नि तेमज दुर्ग, शस्त्र वगेरेथी उत्पन्न थता "संकटमां कणेरना फूलो अने गूगळ (ना धूप) वडे विधिपूर्वक एकसो ने आठ वार जाप करवो / एना प्रभावथी साधक शत्रुओ उपर जय मेळवे छे, राजाने प्रिय बने छे, पुत्र विनानो पुत्रोने मेळवे छे अने दुर्भागी 35 सौभाग्यने पामे छे। (ए माटे) आठम, चौदश, अन्य पर्वदिवसोमां अने प्रहणना दिवसोमां विधिपूर्वक आग्नमा हाम करवा जाइए। एमा बीजो विचार न करवो // 5-8 //
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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