________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय मालामिमां स्तुतिमयीं सुगुणां त्रिलोकीबीजस्य यः स्वहदये निधयेते क्रमात् सः। अङ्केऽष्टसिद्धिरवशा लुठतीह तस्य, नित्यं महोत्सर्वपदं लभते क्रमात् सः॥१६॥ ॥ति'ही'कारविद्यास्तवनम् // जे मनुष्य त्रैलोक्यबीजनी सारा गुणवाळी स्तुतिरूपी आ मालाने त्रणे संध्याए पोताना हृदयमां धारण करे छे तेना खोळामां आठे सिद्धिओ अवश बनीने नित्य आळोटे छे अने ते क्रमे करीने मोक्षपदने / पामे छे // 16 // परिचय 10 आ स्तोत्र 'पञ्चनमस्कृतिदीपक' नामक ग्रंथमां संग्रहीत छे / 'उकारविद्यास्तव'नी जेम 'पूज्यपाद 'नी कृति तरीके तेनो कर्ताए संग्रह कर्यो छे, छतां स्तोत्रना कर्ता विशे बीजा पुरावानी अपेक्षा रहे ज छ। आ स्तोत्रमा 16 पयो छे, ते पैकी 15 पयो उपजातिवृत्तमा छे अने छेल्लु 16 मुं पथ वसंततिलकावृत्तमा छ। हीकारविद्याने अन्य तंत्रोए पण खूब महत्त्व आप्युं छे। तंत्रनो कोई पण ग्रंथ-प्रायः एना उल्लेख 15 विनानो नहीं होय / आ स्तोत्रनी रचना उपरथी एम लागे छे के आ स्तोत्र कोई जैनेतर संप्रदायर्नु होवू जोईए। तेथी अमे एने परिशिष्ट तरीके प्रगट क्युं छे। अभ्यासीओमे ए उपयोगी थशे। जुदा जुदा वर्णोमा तेम ज आधारादि चक्रोमां ह्रीकारना ध्याननो निर्देश पण आ स्तोत्रमा छ। 1. सगुणां N. / 2. कुरुते त्रिसंध्यं N. / 3. महोदयपदं N. /