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________________ विभाग 329 प्रकीर्ण-श्लोकाः आकर्षन् मुक्तिकान्तां सुरपतिकमलां दुर्विधस्यापि वश्यं, कुर्वमुच्चाटयंश्चाशुभमथ रचयन् द्वेषमन्तद्विषां च / तन्वानः स्तम्भमुच्चैर्भवभवविपदा किश्च मोहस्य मोहं, पुंसस्तीर्थेशलक्ष्मीमुपनयति नमस्कारमन्त्राधिराजः // 4 // अर्हन्तो ज्ञानभाजः सुरवरमहिताः सिद्धिसिद्धाश्च सिद्धाः, पञ्चाचारप्रवीणाः प्रवरगुणधराः पाठकाश्चागमनाम् / लोके लोकेशवन्याः प्रवरयतिवराः साधुधर्माभिलीनाः, पश्चाप्यते सदा नः विदधतु कुशलं विघ्ननाशं विधाय // 5 // अपवित्रः पवित्रो वा, सुस्थितो दुःस्थितोऽथवा / ध्यायेत् (यन्) पञ्च-नमस्कार, सर्वपापैः प्रमुच्यते // 6 // अनादिमूलमन्त्रोऽयं, सर्वव्याधिविनाशकः। मङ्गलेषु च सर्वेषु, प्रथमं मङ्गलं मतः // 7 // 15 मुक्तिरूपी स्त्रीआकर्षण करनार, देवेन्द्रोनी लक्ष्मीने पण वश करनार, अशुभर्नु उच्चाटन करनार, अंतरंग शत्रुओ प्रत्ये द्वेष पेदा करनार, संसारनी विपत्तिओनुं स्तंभन करनार अने मोहर्नु पण मोहन करनार आ नमस्कार मन्त्राधिराज मनुष्यने तीर्थंकरनी लक्ष्मी मेट आपे छे // 4 // . केवल ज्ञानने धारण करनारा अने इन्द्रोथी पण पूजित एवा अरिहंत भगवंतो, सिद्धिपदने जेओ वर्या छे एवा सिद्धो भगवंतो, पांच प्रकारना आचारमा कुशल एवा आचार्य भगवंतो, श्रेष्ठ गुणोने धारण करनार अने आगमोनुं अध्ययन करावनार श्री उपाध्याय भगवंतो तथा साधु धर्मनुं पालन करवामां लीन अने देवेन्द्रोने पण वंदनीय एवा श्रेष्ठ मुनि भगवंतो-आ पांचे परमेष्ठिओ अमारा विघ्नोनो नाश करीने अमारं सदा कुशल करो // 5 // 20 अपवित्र होय के पवित्र होय अथवा सुखी होय के दुःखी होय, पंच-नमस्कार- जे ध्यान करे ते सर्व पापोथी मुक्त बने छे // 6 // आ (नमस्कार) मंत्र अनादि मूल-मंत्र छे, सर्व व्याधिओनो नाश करनार के अने सर्व मंगलोमां प्रथम-उत्कृष्ट मंगल छे // 7 //
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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