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________________ [81-36] प्रकीर्ण-श्लोकाः अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताआचार्या जिनशासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः। श्रीसिद्धान्त-सुपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः, पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मङ्गलम् // 1 // प्रापदैवं तव नुतिपदैर्जीवकेनोपदिष्टैः, पापाचारी मरणसमये सारमेयोऽपि सौख्यम् / कः सन्देहो यदुपलभते वासवश्रीप्रभुत्वं, जल्पञ्जाप्यैर्मणिभिरमलैस्त्वन्नमस्कारचक्रम् // 2 // मन्त्रं संसारसारं त्रिजगदनुपमं सर्वपापारिमन्त्रं, संसारोच्छेदमन्त्रं विषमविषहरं कर्मनिर्मूलमन्त्रम् / मन्त्रं सिद्धिप्रधानं शिवसुखजननं केवलज्ञानमन्त्रं, मन्त्रं श्रीजैनमन्त्रं जप जप जपितं जन्मनिर्वाणमन्त्रम् // 3 // अनुवाद 15 इन्द्रो वडे पूजायेला अरिहंत भगवंतो, सिद्धि स्थानमा रहेला सिद्ध भगवंतो, जिनशासननी उन्नति करनारा पूज्य आचार्य भगवंतो, श्रीसिद्धान्तने सारी रीते भणावनारा उपाध्याय भगवंतो, अने रत्नत्रयीनुं आराधन करनारा मुनि भगवंतो, ए पांचे परमेष्टिओ प्रतिदिन तमारं मंगल करो // 1 // 20 ह जिनवर !) पापी एवो कुतरो पण जीवक (महाराजा सत्यन्धरना पुत्र) वडे संभळावेला आपना नमस्कार (पंचनमस्कार)नां पदोने मरण समये सांभळीने देवताई सुखने पाम्यो। तो पछी जप माटे वपराता निर्मल मणिओनी माळावडे नमस्कारचक्रने जपतो सुरेन्द्रनी संपत्तिनुं स्वामीपणुं मेळवे तेमां शो संदेह ? // 2 // संसारमा सारभूत, त्रणे जगतमां अनुपम, सर्व पापरूपी शत्रुओने वशमां करनार, संसारनो उच्छेद 25 करनार, कालकूट झेरनो नाश करनार, कर्मोने निर्मूलन करनार, मोक्षने माटे प्रधान मन्त्र, शिवसुखने उत्पन्न करनार तथा केवल ज्ञानने आपनार जिनभाषित श्री नमस्कार मन्त्रनो तुं जाप कर, जाप कर। जाप करायेलो आ मन्त्र सिद्धिने आपनारो छे // 3 //
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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