________________ [संस्कृत. नमस्कार स्वाध्याय एतद् दृष्ट्वा तत्त्वं, परममनेनैव समरसापत्तिः। सञ्जायतेऽस्य परमा, परमानन्द इति यामाहुः॥१६-१॥ सैषाऽविद्यारहिताऽवस्था परमात्मशब्दवाच्येति।। एव च विज्ञेया, रागादिविवर्जिता तथता // 16-2 // वैशेषिकगुणरहितः, पुरुषोऽस्यामेव भवति तत्त्वेन / विध्यातदीपकल्पस्य, हन्त जात्यन्तराप्राप्तेः // 16-3 // एवं पशुत्वविगमो, दुःखान्तो भूतविगम इत्यादि / अन्यदपि तन्त्रसिद्धं, सर्वमवस्थान्तरेव // 16-4 // एवा (उपर कहेल) परमं तत्त्वने जोईने अयोगी केवलीने ए परम तत्त्व (सिद्धरूप) नी साथे 10 परम समरसापत्ति थाय छे / आ समरसापत्तिने वेदान्तिओ ‘परमानन्द' कहे छ। परमात्म शब्दथी वाच्य ए पर तत्त्वने केटलाक 'अविद्यारहित अवस्था' कहे छे / केटलाक एने रागादिरहित तथता' (तथ्य - सत्यरूप) कहे छे / वैशेषिक दर्शनवाळाओ एने वैशेषिक गुण रहित पुरुष कहे छे / बौद्धो एने विध्यातदीप-निर्वाण कहे छे / पशुत्वविगम, दुःखान्त, भूतविगम वगेरे अनेक शब्दो वडे ते ते तन्त्रोमां ते कहेवाय छे / आ बधा नामोनो परमार्थ आत्माने परिणामि नित्य मान्या विना घटतो नथी, तेथी 15 एकान्त मतोमां ते नामो नाममात्र ज रहे छे // 16-1/4 // .. परिचय श्री षोडशक प्रकरण'ना कर्ता श्रीहरिभद्रसूरिनो संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत ग्रंथना प्राकृत विभागना 'संबोध प्रकरण संदर्भ' (वि. नं. 32) मां आपेल छे / 'षोडशक प्रकरण' मां जुदा जुदा सोळ विषयो पर गंभीर विचारणा छ / तेमांथी श्रीअरिहंत परमात्मा विषयक समरसापत्ति, भावप्रतिष्ठा, 20 पूजा, सालंबन-निरालंबन योग, योगिचित्त, ध्येयनुं स्वरूप, वगेरेने दर्शावता श्लोकोने तारवीने अनुवाद सहित अहीं रजू करेल छ।