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________________ 292 - नमस्कार स्वाध्याय अशिष्योऽशासकोऽदीक्ष्योऽदीक्षकोऽदीक्षितोऽक्षयः। अगम्योऽगमकोऽरम्योऽरमको शाननिर्भरः॥१३८॥ महायोगीश्वरो द्रव्यसिद्धोऽदेहोऽपुनर्भवः। शानैकविजीवघना, सिद्धो लोकाप्रगामुकः // 139 // जिनसहस्रनामस्तवनफलम् इदमष्टोत्तरं नाम्नां, सहनं भक्तितोऽहंताम्। योऽनन्तानामधीतेऽसौ, मुत्यन्तां भक्तिमश्नुते॥१४०॥ इदं लोकोत्तमं पुंसामिदं शरणमुल्यणम् // इदं मङ्गलमनीयमिदं परमपावनम् / / 141 // इदमेव परंतीर्थमिदमेवेष्टसाधनम् / इदमेवाखिलक्लेशसक्लेशक्षयकारणम् // 142 // एतेषामेकमप्यहन्नानामधारयन्त्रथैः। मुच्यते किं पुनः सर्वाण्यर्थक्षस्तु जिनायते // 143 // __॥इति जिनसहस्रनामस्तवनं समाप्तम् // . परिचय दिगम्बर संप्रदायना श्रेष्ठ विद्वान् पं. आशाधर कृत प्रस्तुत 'जिनसहस्रनाम स्तवन' भारतीय ज्ञानपीठ काशी तरफथी वि० सं० 2010 मा प्रकाशित थयेल छे। जेना आधारे अमोए अहीं मूलमात्र उद्धृत कयु छे। पं. आशाधर विक्रमनी तेरमी शताब्दिमां थया छे / पं. नाथूराम प्रेमी 'जैन साहित्य और इतिहास' 20 नामक पोताना पुस्तकमां लखे छे के “शायद दिगम्बर सम्प्रदाय में उनके बाद उन जैसा प्रतिभाशाली, प्रौढ प्रन्थकर्ता और जैन धर्म का उद्योतक दसरा नहीं हुआ।...वे अपने समय के अद्वितीय विद्वान थे।" तेमणे 'प्रमेय रत्नाकर', 'धर्मामृत' आदि अनेक प्रन्थोनी रचना करी छे। अनेक विद्वानो तेमनी पासे अध्ययन करता हता। उपरनी वातनी साक्षि पूरतुं तेमनुं आ जिनसहस्रनाम स्तवन छे, जे तेमणे जिन, सर्वज्ञ, यज्ञार्ह, 25 तीर्थकृत् , नाथ, योगि, निर्वाण, ब्रह्म, बुद्ध, अन्तकृत् शब्दोथी शरु थता दस शतकोमां विभक्त क्युं छे। तेमां श्री जिनेश्वरना 1008 नामो 143 श्लोकोमा आव्या छे / आचार्य श्री जिनसेने महापुराणना 25 मा पर्वना 99 श्लोकमां कयुं छे के अरिहंत भगवान् 1008 लक्षणोथी युक्त होय छे, तेथी तेमनी एक हजार ने आठ नामोथी स्तुति करवामां आवे छे। VGDEVOIDATED
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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