________________ विभाग] जिनसहस्रनामस्तवनम् 7 अथ निर्वाणशतम् निर्वाणः सागरः प्राज्ञैर्महासाधुरुदाहृतः। विमलाभोऽथ शुद्धाभः, श्रीधरो दत्त इत्यपि // 85 // अमलाभोऽप्युद्धरोऽग्निः, संयमश्च शिवस्तथा। पुष्पाञ्जलिः शिवगुण, उत्साहो शानसंक्षकः // 86 // परमेश्वर इत्युक्तो, विमलेशो यशोधरः। कृष्णो शानमतिः शुद्धमतिः श्रीभद्रशान्तयुक् // 87 // वृषभस्तद्वदजितः, संभवश्वाभिनन्दनः / मुनिभिः सुमतिः पद्मप्रभः प्रोक्तः सुपार्श्वकः // 88 // चन्द्रप्रभः पुष्पदन्तः, शीतलः श्रेयसाहयः। वासुपूज्यश्च विमलोऽनन्तजिद्धर्म इत्यपि // 89 // शान्तिः कुन्थुररो मल्लिः सुव्रतो नमिरप्यतः। नेमिः पार्थो वर्धमानो, महावीरः सुवीरकः // 90 // सन्मतिश्चाकथि महति महावीर इत्यथ। महापन्नः सूरदेवः, सुप्रभश्च स्वयंप्रभः // 91 // सर्वायुधो जयदेवो, भवेदुदयदेवकः / प्रभादेव उदकश्च, प्रश्नकीर्तिर्जयाभिधः // 92 // पूर्णबुद्धिनिष्कषायो, विशेयो विमलप्रभः / बहलो निर्मलश्चित्रगुप्तः समाधिगुप्तकः // 93 // स्वयम्भूश्चापि कन्दर्पो, जयनाथ इतीरितः। श्रीविमलो दिन्यवादोऽनन्तवीरोऽप्युदीरितः // 94 // पुरुदेवोऽथ सुविधिः, प्रज्ञापारमितोऽव्ययः / पुराणपुरुषो धर्मसारथिः शिवकीर्तनः // 95 // विश्वकर्माऽक्षरोऽछमा, विश्वभूर्विश्वनायकः। दिगम्बरो निरातङ्को, निरारेको भवान्तकः // 96 // दृढव्रतो नयोत्तुङ्गो, निकलङ्कोऽकलाधरः। सर्वक्लेशापहोऽक्षय्यः, क्षान्तः श्रीवृक्षलक्षणः // 97 // 8 अथ ब्रमशतम् ब्रह्मा चतुर्मुखो धाता, विधाता कमलासनः / अब्जभूरात्मभूः स्रष्टा, सुरज्येष्ठः प्रजापतिः // 98 // हिरण्यगर्भो वेदज्ञो, वेदाङ्गो वेदपारगः। अजो मनुः शतानन्दो, हंसयानत्रयीमयः // 99 // विष्णुत्रिविक्रमः शौरिः, श्रीपतिः पुरुषोत्तमः। वैकुण्ठः पुण्डरीकाक्षो, हषीकेशो हरिः स्वभूः // 10 // विश्वम्भरोऽसुरध्वंसी, माधवो बलिबन्धनः। अधोक्षजो मधुद्वेषी, केशवो विष्टरभवाः // 101 //