________________ विभाग] जिनसहस्रनामस्तानम् निर्विघ्नो विरजाः शुद्धो, निस्तमस्को निरञ्जनः। घातिकर्मान्तकः कर्ममर्मावित् , कर्महाऽनघः // 15 // वीतरागोऽक्षुद(ब)द्वेषो, निर्मोहो निर्मदोऽगदः / वि(वै)तृष्णो निर्ममोऽसंगो, निर्भयो वीतविस्मयः // 16 // . अस्वप्नो निःश्रमोऽजन्मा, निःस्वेदो निर्जरोऽमरः। अरत्यतीतो निश्चिन्तो, निर्विषादस्त्रिषष्टिजित् // 17 // 2 अथ सर्वज्ञशतम् सर्वक्षः सर्ववित्सर्वदर्शी सर्वावलोकनः / अनन्तविक्रमोऽनन्तवीर्योऽनन्तसुखात्मकः // 18 // अनन्तसौख्यो विश्वशो, विश्वदृश्वाऽखिलाडक् / न्यक्षदग्विश्वतश्चक्षुर्विश्वचक्षुरशेषवित् // 19 // आनन्दः परमानन्दः, सदानन्दः सदोदयः। नित्यानन्दो महानन्दः, परानन्दः परोदयः // 20 // परमोजः परंतेजः, परंधाम परमहः।। प्रत्यग्ज्योतिः परंज्योतिः, परब्रह्म परंरहः // 21 // प्रत्यगात्मा प्रबुद्धात्मा, महात्माऽऽत्ममहोदयः। परमात्मा प्रशान्तात्मा, परात्माऽऽत्मनिकेतनः // 22 // परमेष्ठी महेष्टात्मा, श्रेष्ठात्मा स्वात्मनिष्ठितः। ब्रह्मनिष्ठो महानिष्ठो, निरूढात्मा दृढात्मदृक् // 23 // एकविद्यो महाविद्यो, महाब्रह्मपदेश्वरः। पंचब्रह्ममयः सार्वः, सर्वविद्येश्वरः स्वभूः॥२४॥ अनन्तधीरनन्तात्माऽनन्तशक्तिरनन्तदृक् / अनन्तानन्तधीशक्तिरनन्तचिदनन्तमुत् // 25 // सदाप्रकाशः सर्वार्थसाक्षात्कारी समाधीः। कर्मसाक्षी जगञ्चक्षुरलक्ष्यात्माऽचलस्थितिः॥२६॥ निराबाधोऽप्रतात्मा, धर्मचक्री विदांवरः। भूतात्मा सहजज्योतिर्विश्वज्योतिरतीन्द्रियः // 27 // केवली केवलालोको, लोकालोकविलोकनः। विविक्तः केवलोऽव्यक्तः, शरण्योऽचिन्त्यवैभवः // 28 // विश्वभृद्विश्वरूपात्मा, विश्वात्मा विश्वतोमुखः। विश्वव्यापी स्वयंज्योतिरचिन्त्यात्माऽमित(मल)प्रभः॥२९॥ महौदार्यो महाबोधिर्महालाभो महोदयः। . महोपभोगः सुगतिर्महाभोगो महाबलः // 30 // 3 अथ यज्ञार्हशतम् यज्ञार्हो भगवानहन्महार्हो मघवार्चितः। भूतार्थयज्ञपुरुषो, भूतार्थकतुपूरुषः // 31 //