________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत (शिखरिणीवृत्तम्) अयं धर्मः श्रेयानयमपि च देवो जिनपतिव्रतं चैतत् श्रीमानयमपि च यः सर्वफलदः। किमन्यैर्वागजालैबहुभिरपि संसारजलधौ। नमस्कारात्तत् किं यदिह शुभरूपं न भवति // 10 // स्वपञ् जाग्रन् तिष्ठन्नपि पथि चलन् वेश्मनि सरन्, भ्रमन् क्लिश्यन् माद्यन् वन-गिरि-समुद्रेष्ववतरन् / . नमस्कारान् पश्च स्मृतिरवनिखातानिव सदा प्रशस्तैर्विज्ञप्तानिव वहति यः सोज़ सुकृती // 11 // 10 आ नवकार कल्याणकारी धर्म छे, जिनेश्वरदेव पण ए छे, व्रत पण ए छे अने जे सर्व फळोने आपे छे ते श्रीमान पण ए छे / बीजा घणा वाक्प्रपंचोथी शं? आ संसारसमुद्रमा एवं शुं छे के जे आ नमस्कारमंत्रथी* शुभरूप न यतुं होय ? // 10 // जे सूतां, जागतां, ऊभा रहेतां, रस्तामां चालतां, घरमां पेसतां, (स्खलना पामतां) फरतां, दुःखी थतां, प्रमाद आवी जतां, अथवा जंगल, पर्वत के समुद्रोने पार करतां, पूज्य पुरुषोए उपदेशेला पांच 15 नमस्कारोने जाणे स्मृतिना आंतरिक नादवडे मनमां कोराई गया होय (1) तेम धारण करे छे ते अहीं भाग्यशाळी छे // 11 // परिचय ___ आ स्तोत्रनी बे प्रतिओ अमने मळी छे। एक आरा जैन सिद्धांत भवनना हस्तलिखित ग्रंथसंग्रहना त० 25/1 मांथी मळी हती; ज्यारे बीजी रॉयल एशियाटिक सोसायटी कलकत्ताना संग्रहमांथी 'पंचनम20 स्कृतिदीपक' नामना ग्रंथमांथी संग्रहरूपे मळेली हती; ते बे प्रतिओ उपरथी मूळपाठ अने पाठमेदो लईने अनुवाद साथे आ कृतिने अहीं प्रगट करी छ / _ 'पंचनमस्कृतिदीपक'मां आ स्तोत्रना कर्ता तरीके वाचकवर्य श्री उमास्वातिनो उल्लेख कर्यो छ। संभव छे के आ कृति तेमनी होय, छतां बीजो पुरावो न मळे त्यां सुधी आ स्तोत्रना कर्ता विशे निश्चितपणे कही न शकाय। 25 आ स्तोत्र प्रस्तुत ग्रंथना केटलाक स्तोत्रना सारसमुच्चयरूप जणाय छे। खास करीने आ स्तोत्रनुं आठमुं पद्य आपणुं ध्यान खेंचे छे के, “आ नमस्कार मंत्र, ते जगतना उद्धार माटे श्री अरिहंत भगवंतनो मंत्रात्मक शाश्वत देह छे।" श्री नमस्कार महामंत्रनी महान शक्तिनुं वर्णन करतां आ स्तोत्रमा कहेवामां आव्युं छे के, “ए मंत्रनी सहायथी चंद्रने सूर्य, सूर्यने चंद्र के पृथ्वीने देवलोक वगेरे बनावी शकाय।" सारांश के नमस्कारमंत्रना प्रभावादिने आ स्तोत्रमा सुंदर रीते रजू करवामां आवेल छे। 30 . 1. नमस्कारस्तत्तत् यदिह शुभरूपञ्च भवति / 2. सुपन् / 3. स्खलन् / . * आ संसारमा जे जे शुभरूप छे, ते ते बधुं नवकार(ना प्रभावे) ज छे।