________________ 283 विभाग] जिनसहस्रनामस्तोत्रम् 283 श्रीहीरहीरविजयाह्वयसरिशिष्यश्रीकीर्तिकीर्तिविजयाभिधवाचकानाम् / शिष्येण ढौकितमिदं भगवत्पदाने, स्तोत्रं सुवर्णरचितं विनयाभिधेन // 149 // // इति महामहोपाध्यायश्रीविनयविजयवाचकपुङ्गवविरचितं श्रीजिनसहस्रनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम्। 5 हीरला श्रीहीरविजयसूरि'ना शिष्य सुंदर कीर्तिवाळा श्रीकीर्तिविजय उपाध्यायना श्रीविनयविजय नामना शिष्ये सुवर्ण (सारा अक्षरो) वडे रचेलं आ स्तोत्र भगवंतना चरणकमलोमां धर्यु छे // 149 // इति श्रीजिनसहस्रनामस्तोत्र सार्थ सम्पूर्ण / परिचय श्री ‘जिनसहस्रनामस्तोत्र' (गुजराती अर्थयुक्त) श्रीजैनधर्मप्रसारक सभा, भावनगर तरफथी 10 वि. सं. १९९४.मां प्रकाशित थयेलं छे। __ आ स्तोत्रना कर्ता महामहोपाध्याय श्रीविनयविजयजी महाराज छे। तेओ काव्य, व्याकरण, न्याय, आगम वगेरे अनेक शास्त्रोमां निपुण हता। तेमना लोकप्रकाश, कल्पसूत्रसुबोधिका, शान्त-सुधारस, विनयविलास वगेरे अनेक ग्रंथो प्रसिद्ध छे। तेओश्रीए आ स्तोत्र वि. सं. 1731 मां गांधार नगरमां चातुर्मासमां रचेलं छे / आखं स्तोत्र भुजगवृत्तमा होवाथी गेय छे अने तेथी ज कर्णप्रिय, मनोहर अने15 शुभभाववर्धक छे। . तेना मुख्य श्लोक 143 छे / ते दरेकमां सात वार 'नमः' पद आवे छे। ए रीते एकन्दर 1001 वार परमात्माने नमस्कार थाय छे। तेथी 'जिनसहस्रनामस्तोत्र' ए नाम सार्थक छे। वळी 'नम्' ' धातु उपर भाववाचक नाम 'नाम' पण थई शके छे। ए अपेक्षाए प्रस्तुत प्रन्थनु नाम अधिक सार्थक .. लागे छे. . श्लोक 21 थी 117 मां श्रीतीर्थकर भगवंतोनुं स्वर्ग-च्यवनथी मांडीने मोक्षगमन सुधीनुं सामान्य चरित्र क्रमशः अत्यन्त सुन्दर रीते रजु कयुं छे। त्यार पछी सर्व नमस्करणीय तत्त्वोने सुंदर रीते स्तव्यां छे। आ स्तोत्रमांना केटलांक विशेषणो तो अर्थनी दृष्टिए बहुज गंमीर छे। उच्च प्रकारना आराधकभाव विना ए विशेषणोनुं सर्जन शक्य नथी। - श्रीतीर्थकर परमात्मानी भक्ति जेमने अत्यन्त प्रिय छे, एवा मुमुक्षुओ माटे आ स्तोत्र कंठस्थ 25 करवा योग्य छे। कंठस्थ कर्या पछी प्रभु सन्मुख प्रशान्त वातावरणमा ज्यारे एने गावामां आवे छे, त्यारे एनाथी जे चित्तनी प्रसन्नता प्राप्त थाय छे, तेनुं वर्णन अहीं शी रीते करी काय ? 'नमस्कार महामन्त्र'ना प्रथम-पदना अर्थने आ स्तोत्र सुंदर रीते व्यक्त करनारं होवाथी प्रस्तुत ग्रन्थमा अमे एनो संग्रह करेल छे. 20 1 श्री अने ही देवताओ जेमने सुप्रसन्न छे एवा श्री हीरविजयसूरि अने श्री भने कीर्ति जेमने सुप्रसन्न छे 30 एवा श्री कीर्तिविजय उपाध्याय००० एवो अर्थ पण कदाच ग्रंथकर्ताने अभिप्रेत होय /