________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत नमो जैनवागीश्वरीदेवतायै, नमो वैनयिक्या सुधीसेवितायै / नमो वाङ्मयामोधपीयूषवृष्टयै, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 143 // नमस्कार एकोऽपि चेत्तीर्थनेतुर्जनांस्तारयत्येव संसारवार्द्धः / तदेतत्सहस्रं पुनः किं न हन्यानृणाङ्किल्बिषम्भूरिजन्मान्तरोत्थम् // 144 // तथा चाहु : इक्को वि नमुक्कारो, जिणवरवसहस्स बद्धमाणस्स / संसारसागराओ, तारेइ नरं व नारिं वा // 145 // स्तवोऽयं प्रातरुदित-स्तमस्स्तोमच्छिदर्हताम् / नमस्कारसहस्रेण, सहस्रकिरणायताम् // 146 // सहस्रकिरणस्येव, स्तवस्यास्य प्रभावतः / दूरे दोषाः पलायन्ते, पुण्याहः प्रकटो भवेत् // 147 // स्थित्वा वर्षारात्रं, गन्धारे, मानिसंयममितेऽन्दे (1731) - श्रीविजयप्रभसूरि-, प्रसादतः स्तोत्रमिदमुदितम् // 148 // जिनवाणीनी अधिष्ठात्री श्रीवागीश्वरीदेवीने नमस्कार थाओ। विनय वडे बुद्धिमानोए सेवेली एवी 15 ते देवीने नमस्कार थाओ। वाणीमय अमोघ अमृतने वरसावनारी ते देवीने नमस्कार थाओ अथवा वैनयिकी बुद्धि वडे (विनय वडे) बुद्धिमान पुरुषो वडे सेवित अने सुवचनरूप अमोघ अमृतने वरसावनारी अवी श्री जिनवाणी-रूप देवताने नमस्कार थाओ // 143 // (उपर प्रमाणेना 143 काव्योमां दरेकमां सात सात वार 'नमः' शब्द आवतो होवाथी एकंदर एक हजारने एक वार नमस्कार थयेल छ / ) 20 तीर्थंकर भगवंतने एक वार करेलो नमस्कार पण मनुष्योने संसार-समुद्रथी तारे छे तो पछी ___आ हजार वार करेल नमस्कार मनुष्योनां अनेक जन्मोनां करेलां पापोनो नाश शुं न करे ? अर्थात् जरूर करे // 144 // कयुं छे के जिनेश्वरोमां वृषभ समान श्रीवर्द्धमान स्वामीने करायेलो एक पण नमस्कार संसार-सागरथी 25 पुरुष अथवा स्त्रीने तारे छे // 145 // सवारमा गवायेलं आ अरिहंतोतुं स्तवन हजार नमस्कार वडे सहस्र (हजार) किरणवाळा सूर्य सदृश अज्ञानांधकारनुं नाशक थाओ // 146 // सहस्र किरणवाळा सूर्यनी जेम आ स्तवना प्रभावथी सर्व दोष रूप दोषा (रात्रि) दूर थाय छे अने पुण्यरूप दिवस प्रगट थाय छे // 147 // 30 गंधार नगरमां वर्षारात्र (चातुर्मास) रहीने संवत 1731 वर्षे गच्छाधिपति श्रीविजयप्रभसूरिनी कृपाथी आ स्तोत्र रचवामां आव्युं छे // 148 //