________________ 265 विभाग1 जिनसहस्रनामस्तोत्रम् नमो जन्मतोऽप्यार्यमार्गाध्वगाय, नमो रुद्धदुर्नीतिचर्याऽपगाय / नमस्ते विनाऽध्यापकं शिक्षिताय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 41 // नमो यौवने प्राप्तपाणिग्रहाय, नमो मुक्तभोगोपभोगाग्रहाय / नमस्ते कृतप्राच्यकौषधाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 42 // नमस्ते त्रिवर्गक्रियासाधकाय, नमस्ते यथार्ह तदाराधकाय / नमस्तुर्यवर्गेऽप्यनिर्बाधकाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 43 // नमो दान्तपञ्चेन्द्रियान्तःस्थलाय, नमःकीलिताजस्रकम्प्रोच्चलाय।। नमो ज्ञानधाराधुतान्तर्मलाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 44 // नमो बिभ्रते सात्त्विकाञ्चित्तवृत्ति, नमो बिभ्रते मानसैनोनिवृत्तिं / नमः पश्यते सर्वतस्तत्वदृष्टया, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 45 // नमो भोगभङ्गीप्रसङ्गानुगाय, नमो नोपलिसाय तत्तद्रजोभिः। नमः प्रोल्लसत्पुण्डरीकोपमाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 46 // 10 जन्मथी ज आर्य (नीति) मार्गना पथिक एवा आपने नमस्कार थाओ। दुर्नीतिनी चर्यारूप * नदीना प्रवाहने रोकनारा आपने नमस्कार थाओ। अध्यापक विना पण शिक्षणने प्राप्त थयेला एवा आपने नमस्कार थाओ॥४१॥ 15 यौवनावस्थामां पाणिग्रहणने (लग्मने) पामेला एवा आपने नमस्कार थाओ। भोगोपभोगमां आसक्ति रहित एवा आपने नमस्कार थाओ। भोगोपभोगमा पण पूर्वार्जित कर्मोनू औषध (क्षपण) करनारा .एवा आपने नमस्कार थाओ // 42 // यथायोग्यपणे प्रथम त्रण पुरुषार्थोनी क्रियाने साधता एवा आपने नमस्कार थाओ। तेने उचित गते आराधनारा ण्वा आपने नमस्कार थाओ। ते वखते चोथा मोक्ष पुरुषार्थने पण बाधा नहीं पमाडनारा 20 एवा आपने नमस्कार थाओ // 43 // पांचे इन्द्रियोना मर्मने दमनारा एवा आपने नमस्कार थाओ। निरंतर चंचल एवा मनने ध्येयरूप खीले बांधता एवा आपने नमस्कार थाओ। ज्ञानधारावडे अंतरमळने धोनारा एवा आपने नमस्कार थाओ॥४४॥ . सात्त्विक चित्तवृत्तिने धारण करनारा आपने नमस्कार थाओ। मानसिक पापोनी निवृत्तिने धारण 25 करनारा आपने नमस्कार थाओ। सर्व तरफ तत्त्वदृष्टिथी जोता एवा आपने नमस्कार थाओ॥४५॥ अनेक भोगोना प्रसंगोने अनुसरतां (भोगोने भोगवता) छतां पण ते वखते ते ते भोगोनी रज (कर्माश्रव) थी अलिप्त एवा आपने नमस्कार थाओ। विकस्वर पुंडरीक कमळनी उपमावाळा आपने नमस्कार थाओ॥ 46 // 1 उच्चलमन (शब्दरत्नमहोदधि कोश)। 30