________________ 249 5 विभाग] मातृकाप्रकरणसंदर्भः 'हूँ' अर्हद् -- धरणाचार्योपाध्याय-मुनिगोचरम् / ह् र ऊ उ म्।। सूर्युपाध्याय-मुनयः, स्पृशन्ति 'ॐ' कारमादरात् // ऊ उ म् // 4 // 'आँ' जिनाऽजनुराचार्य - मुनितः प्रादुरस्तीह // अ अ आ म् / अर्हद् - धरण - वाग्देव्यो 'ही' कारस्य निबन्धनम् // ह र ई // 5 // आधुपान्त्यान्तिमार्हन्तो गीश्च 'अर्ह' पदमास्थिताः (गीश्वा' है 'पद-मास्थिताः)। ज्ञान - दर्शन - चारित्रमुक्तयो भान्ति तत्र वा // अ र हँ // 6 // बीजाक्षर 'हूँ'कारमां पांच वर्णो आ प्रमाणे छे-ह+र+ऊ+उ+म् - आ पांच अंशमाथी पहेला अंश 'ह' कारथी अर्हत् (अरिहंत), बीजा अंश 'र' कारथी धरण (धरणेन्द्र ?) त्रीजा अंश 'ऊ'कारथी सूरि, चोथा अंश 'उ'कारथी उपाध्याय अने पांचमा अंश 'म' कारथी मुनिना अर्थने बतावे छे // 10 बीजाक्षर 'ॐ'कारमा सूरि आदिना त्रण वर्णो आ प्रमाणे छे-ऊ+उ+म्-आ त्रण अंशमांथी पहेला अंश 'ऊ'कारथी सूरि, बीजा अंश 'उ'कारथी उपाध्याय अने त्रीजा अंश 'म्'थी मुनि ॐकारने आदर पूर्वक स्पर्शे छे // 4 // बीजाक्षर 'ॐ'कारमा चार वर्णो आ प्रमाणे छे—अ+अ+आ+म् आ चार अंशमांथी पहेलो अंश 'अ' अरिहंतथी, बीजो अंश 'अ' अजनु अर्थात् सिद्धथी, त्रीजो अंश 'आ' आचार्यथी अने चोथो 15 अंश 'म्' मुनि शब्दथी उत्पन्न थयेल छ / बीजाक्षर 'ही'कारमा त्रण वर्णो आ प्रमाणे छे-ह+र+ई-आत्रण अंशमाथी पहेलो अंश 'ह' अरिहंत'थी, बीजो अंश '' धरण(धरणेन्द्र ? )यी अने त्रीजो अंश 'ई' वाग्देवी एटले सरस्वतीथी निष्पन्न थाय छे // 5 // . अर्ह पदमां त्रण वो आ प्रमाणे छे-अ+र+ह-आत्रण अंशोमां आदि अंश 'अ', 20 उपान्त्य अंश 'र' अने अन्तिम अंश 'हँ'-ए त्रण अंशों मळीने बनेलो 'अहं' अक्षर अरिहंतनो वाचक छ; अने वाणी एटले वाङ्मय वर्णमाला ('अ' थी 'ह' सुधीना वर्णो)नो वाचक छ। अथवा ते पदमां प्रथम अंश 'अ' थी ज्ञान, '' थी दर्शन अने 'ह' थी चारित्र-ए त्रण रत्नो अने तेमनु फल 'मुक्ति' शोमे छे, एम थाय छे // 6 // 1 सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनमां श्रीहेमचन्द्रसूरिए प्रथम मंगलाचरणरुपे जे 'अर्ह' सूत्र रच्युं छे तेनी 25 व्याख्या करतां जे 'अर्ह इत्येतदक्षरं परमेश्वरस्य परमेष्ठिनो वाचकम्' एम कर्तुं छे / 'अई' ऊपर तेमणे पोते रचेला बृहन्यासमां सविस्तर निरूपण कर्यु छे, ते आ ग्रन्थमा ज अन्यत्र आपेलुं छे। . .2 सरखावो :- "भक्खर भाइ अयारं हयारमंतक्खरं च माईए / - मजो वण्णसमुच्चयरयणत्तयभूसियं भरहं // "- नवकारसारथवणं न. स्वा. प्राकृतविभाग. अर्हनो आद्य अक्षर 'अ' बाराखडीना प्रथमाक्षरने, 'ह' बाराखडीना अंतिम अक्षरने अने 'र' बाकीना वर्णोना 30 समुच्चयने सूचवे छे। 'अहं' थी सम्पूर्ण मातृका सूचवाय छे; अथवा संपूर्ण अई' रत्नत्रयथी शोभता अरिहंतने सूचवे छे। अहम् एटले आत्मा, ए ज्यारे रेफ- रत्नत्रयीथी युक्त बने छे, त्यारे 'अहं' कहेवाय छ /