________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय स्वस्थाने पूर्णमुच्चारं, मार्गे चार्ध समाचरेत् / पादमाकस्मिकातङ्के, स्मृतिमात्रं मरणान्तिके // 14 // पोतानां स्थाने होय त्यारे पूर्ण-उच्चार पूर्वक, मार्गमां होय त्यारे अर्ध-उच्चारपूर्वक, अकस्मात् आतंक एटले तीव्र रोग अथवा वेदना थई आवे त्यारे चोथा भागना उच्चारपूर्वक अने मरण नजीक होय 5 त्यारे केवल मानसिक स्मरण वडे नवकार गणवो जोईए // 14 // परिचय आ संदर्भ 'उपदेशतरंगिणी' नामक ग्रन्थमाथी लेवामां आव्यो छे। आ ग्रन्थ श्रीयशोविजय प्रन्थमाला, बनारसथी वीर सं० 2437 मा प्रकट थयेल छे। तेमां पृष्ठ 146-147 पर आ संदर्भ 'नमस्कार स्मरणा' रूपे आपेल छ। 10 आ ग्रन्थना कर्ता श्रीसोमसुंदरसूरिना शिष्य श्रीनन्दिरत्नगणिना शिष्य श्रीरत्नमंदिरगणि छ। भोजप्रबन्ध नामनो तेमनो ग्रंथ प्रसिद्ध छे अने तेमां तेमनो जीवन समय सोळमी शताब्दि होवानो उल्लेख छ। श्रीविजयवर्णिविरचित'मन्त्रसारसमुच्चयापरनाम-ब्रह्मविद्याविधिग्रन्थादर्हदादिबीजस्वरूपसंदर्भः // * हीकारस्वरूपम् सान्तान्तं रेफमारूढं, चतुर्थस्वरयोजितम् / नाद-बिन्दु-कलोपेतं, धर्म-कामार्थसाधनम् // 1 // नादो विश्वात्मकः प्रोक्तो, बिन्दुः स्यादुत्तमं पदम् / कलापीयूषनिष्यन्दीत्याहुरेवं जिनोत्तमाः // 2 // नाद-बिन्दु-कलायुक्तं, पूर्णचन्द्रकलाधरम् / त्वनुस्वारं भवेद् बिन्दुः, त्वर्धमात्रं विशेषतः॥३॥ हल्लेखा। लोकराजः। जगदधिपः / लोकपतिः। भुवनेश्वरी। माया। त्रिदेहम् / तत्त्वम् / 25 शक्तिः। शक्तिप्रणवमित्यादि // ह्रीं // * आ संदर्भनो अनुवाद आपेल नथी।