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________________ 222 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत तेहनउ जीव एकाप्रभाव छतइ तीर्थंकर कर्म ऊपार्जइ। मध्यमभाव छतइ विद्याधर, चक्रवर्ति, वासुदेव, प्रतिवासुदेव कर्म ऊपार्जइ / थोडइ भाव छतइ एकातपत्र राज्य पामइ / / इति लक्ष नउकार जापविधिः॥ शुभं भवतु श्रीचतुर्विधसंघस्य // नवकार इक अक्खर, पावं फेडेरे सत्तअयराणं / पन्नासं च परणं, सागर पणसय समग्गेणं // श्रीरस्तु श्रमणसंघस्य // परिचय आ विधिनी एक प्रति पालीताणा, श्रीआगम जैन मंदिरना ज्ञानभंडारनी प्रति नं. 1999 नी 10 त्रण पानानी मळी हती, तेमा 'नवकारसारथवण' स्तोत्र हतुं, तेनी अंते आ प्रकारे विधि लखी हती ते विधि अमे अहीं संग्रहीत करी छे। आ नानी विधि लाख नमस्कारनी आराधना माटे अत्यंत उपयोगी छे। लाख नवकार जापनी बीजी विधिनी एक प्रति डभोई, मुक्ताबाई जैन ज्ञानमंदिर प्रति नं. 4327 नी मळी हती, जेमा प्रथम 'संक्षिप्त नमस्कार अर्थ' जणाव्यो हतो ने ते पछी आ विधि दर्शावी 15 हती। आ विधि जूनी गुजराती भाषामां छे, उपर्युक्त संस्कृत विधिनो अनुवाद छे तेथी तेने गुजराती विभागमा न मूकतां अहीं आपी छे। ____ आ संस्कृत अने गुजराती विधि उपरथी स्पष्ट थाय छे के लाख नवकार जापनी आ विधि कोई काळे खूब प्रचलित हशे। __त्रीजी विधि अमने एक हस्तलिखित छूटा पाना परथी मळी आवी छे। ते विधि ते ते 20 कृत्यकारित्व माटे होय एम जणाय छे / AME
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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