________________ विभाग] पञ्चनमस्कृतिदीपकान्तर्गतनमस्कारमन्त्राः आ विश्वातिशायिनी विद्या छे-सिद्धिना महेलमां चडवा माटे आ तेर अक्षरोवाळी विश्वातिशायिनी विद्या छे, ते ए (महेल)ना पगथियां स्वरूप छे // 22 // ऋषिमंडलमंत्रराजनो आ मंत्र छे–जे भव्य पुरुष सत्तावीश वर्णोवाळो आ 'ऋषिमंडलमन्त्रराज 'नु ध्यान करे छे अने आठ हजार वार जाप करे छे ते पोतानां वांछितोने प्राप्त करे छे अने सर्व मनुष्योने अभीष्ट एवां इहपरलोकनां सुखोने मेळवे छे // 23 // आ मूलत्रयी विद्या कहेवाय छे–ते वशीकरण, मोहन अने पुष्टि करनारी छे // 24 // 'ॐ नमो अरिहंताणं' ए मंत्र माटेनी ध्यान प्रक्रिया बतावे छे—आठ दळमां आठ वर्णोथी शोभता अने चन्द्रमण्डलना आकारवाळा कमळनुं तुं मुखरूपी गुहामां स्मरण-ध्यान कर / “ॐ नमो अरिहंताणं" ए वर्णोने क्रमशः प्रत्येक पांदडी उपर ते (कमल)मां मूकवा जोईए। ते पछी (अकारादि) स्वरोवाळी अने सुवर्णना जेवी गौर वर्णवाळी कर्णिकानी केसरालीस्मरण करवू जोईए। जगतमां 10 शोभायमान एवी आ कर्णिका सुधाबीजपणाने पामो // 25 // हीकार मंत्रनी ध्यान प्रक्रिया बतावे छे-चन्द्रबिंबमांथी ऊगता पूर्ण चन्द्र समान अमृतबीज सदृश मायावर्ण हीकार धीमे धीमे नीचे आवी रह्यो छे एम ध्यान करवू / पछी अत्यन्त विकसित, अति विस्तृत अने प्रभामण्डलनी मध्यमा रहेलो होकार मुखकमलमा प्रवेशे छे अने मुखकमलनी कर्णिका उपर बिराजमान छे, एवं चिंतन करतुं / वळी ते वर्ण जाणे मुखकमलना प्रत्येक पत्रमा भमतो होय, क्षणमां 15 : (मुखमांना) आकाशमां विचरतो होय, मनना अंधकारने छेदतो होय, अमृतरसने झरतो होय, ताळवाना छिद्रमा पेसतो होय, भ्रूमध्यमां चमकतो होय अने जाणे ज्योतिर्मय होय, एवा अचिंत्य प्रभाववाळा हीकारनं मुनिए ध्यान करवू / ॐ नमो अरिहंताणं अने हीकार ए बे मंत्रोचें फळ : ॐ नमो अरिहंताणं ए आठ वर्णो अथवा ही, स्मरण करनार योगी विषनो नाश करे छ। एनो 20 जाप करता करतां सकल शास्त्रनो पारगामी थाय छे / एनो निरंतर अभ्यास करतां छ मासमा मुखमा रहेली धुमाडानी दीवेट जूए छे / पछी एक वर्ष थतां मुखमांथी महाज्वाळा नीकळती जूए छे / ते पछी सर्वज्ञर्नु मुख जूए छे / ते पछी प्रत्यक्षरूपे सर्वज्ञने जूए छे // 26 // सात बीजवाळा मंत्रनुं ध्यान:- .... ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ए प्रकारे सात बीज मंत्रोनुं ध्यान करनार सात प्रकारनी ऋद्धि 25 पामे छ / प्राचीन समयनी जेम आजे पण आपणा माटे ए जाप करवा योग्य छे / तेनुं मूळ एक ज छे। ते त्रण कुण्डलाकार वेष्टनथी युक्त छे / तेनी नीचे माया-हीकार पण (त्रणं कुंडलाकारथी वेष्टित (?), ईकार अने बिंदुथी युक्त छ। आ नव अक्षरवाळु बीज अनाहत कहेवाय छ। एनां ध्यानथी जे परब्रह्मरूप छे, अगम्य छे, अवाच्य छे ए, सिद्धचक्र मुक्तिमा रहेलं होवा छतां ते ध्येय विषय बने छ। . ए रीते '30' आदि जाप्यनुं वर्णन कर्यु। दरेकनी रुचि मुजब जाप्य (अरिहंतादि पदो) नाना 30 प्रकारना होवा छतां बधां एक ज छे कारण के परस्पर सदृश छ / श्री नेमिचन्द्र सैद्धांतिके रचेला द्रव्यसंग्रहमां जणाव्युं छे के-- [अहींथी आगळ (द्रव्यसंग्रहमा) मंत्रवाक्यमा रहेल जे पदस्थ ध्यान, तेनुं विवरण करे छे-1