________________ 212 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत आ अंगन्यास माटेनो मंत्र छ।-आ पांचने करेलो नमस्कार सर्व पापोनो नाश करनारो छ / सर्व प्रकारनां मंगलोमां आ नमस्कार प्रथम मंगल छे // 7 // आ वज्रपंजर मंत्र छे-विपरीत कार्योम अंगन्यास करवो अने शोभन कार्योमां वज्रपंजरनुं स्मरण करवू / ते बन्नेथी रक्षा थाय छे // 8 // ___ आ अपराजितविद्या छे / आ अनादिसिद्ध मंत्र चित्तने चमत्कार पमाडनारो छे। आ प्रकारे पंचांगी विद्यानुं ध्यान करनार कर्मनो क्षय करे छे // 9 // ___ आ परमेष्ठिओनो बीज-मंत्र छे ।-अरिहंतनो अ, सिद्ध-अशरीरीनो अ, आचार्यनो आ, उपाध्यायनो उ अने मुनिनो म् , ए प्रकारे परमेष्ठीना पांच अक्षरोनी संधि करतां-अ+अ = आ+आ =आ+उ=ओ+म् =ॐकार निष्पन्न थाय छे / जैनेन्द्रव्याकरणनां सूत्रोथी तेनी सिद्धि थई छे // 10 // 10 आ षोडशाक्षरी विद्या छे–मन्त्रपदोमांथी निपजेली अने पांचे गुरुओना नाममाथी उत्पन्न सोळ अक्षरोथी शोभती महाविद्याने जगतना मनुष्योए नमस्कार करेल छे, तेनुं तुं स्मरण कर / बसो बार आ विद्यानुं एकाग्र मनथी जाप करनार ध्यानी पुरुष इच्छा न करे तो पण उपवासना तपनुं फळ मेळवे छे॥११॥ आ सत्तर अक्षरनी विद्या छे—आ विद्याथी मानवी वाणीमां वाद कुशळता मेळवे छे / / 12 // आ त्रण देवोनी विद्या छे // 13 // आ छ अक्षरनी विद्या छे-ते दीक्षा आपतां कहेवामां आवे छे // 14 // आ छ छ वर्णोथी उत्पन्न थयेली विद्या छे—आ अजेय अने पवित्र विद्यानो त्रणसो वार जाप करनार ध्यानी पुरुष एक उपवास, फळ मेळवे छे // 15 // __ आ चार वर्णात्मक मंत्र छे-आ मंत्र चार वर्ग-१ धर्म, 2 अर्थ, 3 काम अने 4 मोक्षने 20 आपनारो छ / आ मंत्रनो चारसो वार जाप करनार योगी एक उपवास, फळ मेळवे छे // 16 // आ बे वर्णनो मंत्र छे // 17 // . आ एकाक्षरी मंत्र छे--योगीओ सदा बिन्दु सहित ॐ कारनुं ध्यान करे छे / ते कामनाओने पूर्ण करनारो छे अने मोक्षने पण आपे छे, ते प्रणव-ॐकारने नमस्कार थाओ // 18 // अकारनुं ध्यान अने तेनुं फळ—आदि मंत्रना अरिहंत नामना अकारनो एकाग्रताथी पांचसो 25 वार जाप करनार एक उपवास- फळ मेळवे छे // 19 // आ पांच वर्णमयी विद्या छे / ते विद्या पंच तत्त्वथी उपलक्षित छे / श्रेष्ठ मुनिवरोए श्रुतस्कन्धमांथी ए विद्यानो बीजबुद्धियी उद्धार करेलो छे। बंदीवानने छोडाववा माटे प्रथम मंत्र हाँ अने शान्तिने माटे बीजो मंत्र ही दर्शावेलो छ / त्रीजो मंत्र हूँ लोकोनें मोहन करवा उपयोगमा लेवाय छ। चोथो मंत्र हौ कर्म नाश माटे छे / ज्यारे पांचमो मंत्र हूँः छये कर्मो माटे छे। ए पांचे मंत्रो मुक्तिने आपनारा 30 जणावेलाछे। पोताना मनने वश करीने त्रिसन्ध्य नियत-अभ्यास-जाप करवायी साधक निःशंक थईने निगूढ एवा जन्मबंधनने जलदीथी छेदी नाखे छे // 20 // आ विद्या मुक्तिने आपनारी छे-जे संयमी पुरुष एकाग्र बुद्धिथी निरंतरपणे मंगल, शरण अने उत्तम एवा अरिहंत, सिद्ध, साधु अने धर्म ए चार वर्गोनुं स्मरण करे छे ते मोक्षलक्ष्मीनो आश्रय करे छे // 21 //