________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय कृष्ण-शाम्बादिवद् भाव-नमस्कार-परो भव / मा वीर-पालकन्यायात् , मुधाऽऽत्मानं विडम्बय // 25 // यथा नक्षत्रमालायां, स्वामी पीयूषदीधितिः। तथा भाव-नमस्कारः, सर्वस्यां पुण्यसंहतौ // 26 // जीवेनाकृतकृत्यानि, विना भावनमस्कृतिम् / गृहीतानि विमुक्तानि, द्रव्यलिङ्गान्यनन्तशः // 27 // अष्टावष्टौ शतान्यष्टसहस्राण्यष्टकोटयः। विधिध्याता नमस्काराः, सिद्धयेऽन्तर्भवत्रयम् // 28 // धर्मवान्धव ! निश्छम पुनरुक्तं त्वमर्थ्यसे / संसारार्णव-बोहित्थे मात्र मन्त्र श्लथो भव // 29 // अवश्यं यदसौ भाव-नमस्कारः परं महः / स्वर्गापवर्ग-सन्मार्गो, दुर्गति-प्रलयानिलः // 30 // शिवतातिः सदा सम्यक्, पठितो गुणितः श्रुतः। . समनुप्रेक्षितो भव्यैर्विशिष्याऽराधना-क्षणे // 31 // 15 - हे आत्मन् ! तुं कृष्ण अने शाम्ब वगेरेनी जेम भावनमस्कार करवामां तत्पर था, पण कृष्णना सेवक वीरा साळवी अने कृष्णना अभव्य पुत्र पालक वगेरेनी जेम द्रव्यनमस्कार करी फोगट आत्माने विडंबना न पमाड // 25 // जेम नक्षत्रोना समुदायनो स्वामी चन्द्र छे, तेम सर्व पुण्यसमूहनो स्वामी भावनमस्कार छे // 26 // आ जीवे अनन्तीवार द्रव्यलिंगो (साधुवेष) ग्रहण कर्या छे अने छोड्या छे पण भावनमस्कारनी 20 प्राप्ति विना ते सर्व मोक्षरूपी कार्य साधवामां निष्फळ निवड्या छे // 27 // शास्त्रोक्त विधिपूर्वक नमस्कारमन्त्रनो आठ करोड, आठ हजार, आठ सो अने आठ वार जाप कर्यो होय तो ते मात्र त्रण ज भवनी अंदर मोक्ष आपे छे // 28 // हे धर्मबन्धु ! सरळ भावे फरीथी तने प्रार्थना करुं छु के संसार-समुद्रमा जहाज समान आ नमस्कार मंत्र गणवामां तुं प्रमादी न था // 29 // 25 नक्की आ भावनमस्कार उत्कृष्ट-सर्वोत्तम तेज छे, स्वर्ग अने मोक्षनो साचो मार्ग छे, तथा दुर्गतिनो नाश करवामां प्रलयकाळना पवन समान छे // 30 // मोक्षनी सोपानपंक्ति समान आ भावनमस्कार भव्यो वडे सदा पठन करायो छे, गणायो छे, संभळायो अने विचिंतित करायो छे; तेमां पण अंतिम मरणकालीन आराधनानी क्षणे ते विशेषे करीने पठन, गुणन, श्रवण अने चिंतन करायो छे // 31 // 30 1. न्यावत् क. हि.। 2. °यानलः ख. ग. हि.।