________________ 12 नमस्कार स्वाध्याय (5) मथुरायागपटमध्यस्थापितमङ्गलमुखपाठः आ चित्र पण उपर्युक्त विन्सेन्ट ए. स्मिथना ग्रंथमांनी प्लेट VII परथी तैयार करवामां आव्युं छे। आ आयागपट छे, जेमां वच्चेनी जग्याए श्री अरिहंत भगवन्त पद्मासने स्थित छ / तेओ ध्यानमुद्रामां लीन छे अने शिरपर छत्र शोभी रह्यं छे। तेमनी आजुबाजु चार तिलकरत्न हतां ते न लेतां तेनी जगाए अहीं 'चत्तारि मंगलं' आदिनो मूळ पाठ मूकेल छ / __ आ आयागपटनी उपरनी बाजुए चार अने नीचेनी बाजुए चार-एम मळी कुल आठ मंगल आपेलां छे / खूब ब प्रचलित एवां आ 'भष्टमंगल' जैन रीतिनां अति प्राचीन प्रतीको छे / आनाथी प्राचीन अने आवी सारी. रीते एक साथे जळवायेल 'अष्टमंगल' हजु सुधी बीजे क्यांय मळ्या नथी। डॉ. उमाकान्त पी. शाहे पोताना 'Studies in Jaina Art' नामक कलाग्रन्थमा आ मंगलोर्नु नीचे प्रमाणे नामकरण कर्य छे: उपरनी हरोळ (जमणी बाजुएथी)() A pair of Fish (मत्स्ययुगल-मत्स्ययुग्म) (2) A heavenly Car (पवनपावडी) (3) A Srivatsa Mark (श्रीवत्स) (4) A Powder Box (शरावसंपुट) नीचेनी हरोळ (जमणी बाजुएथी)(५) A Tilakaratna (तिलकरत्न) (6) A Full Blown Lotus (पुष्पचंगेरिका-पुष्पगुच्छ) (7) An Indrayasti or Vaijayanti (इंद्रयष्टि व वैजयंती) (8) A Mangal-Kalasa (Auspicious Vase) (मंगल-कलश) . मूलपाठनी बे बाजु पेल स्तंभो "Persian Achaemenian" रीतिना छे अने प्रत्येक स्तंभनी उपर तथा नीचे भिन्न भिन्न प्रतीको आपेल छे / जमणी बाजुना स्तंभनी सोथी उपर 'धर्मचक्र, छे अने डाबी बाजुना स्तंभनी उपर 'कुंजर' (हाथी) कंडारेल छे। बन्ने स्तंभोनी नीचे पण जुदा जुदा बे प्रतीको छे। आ चारे प्रतीकोनी भिन्नता शिल्पनी दृष्टिए विचारणीय लागे छ। जे परथी आ चित्र तैयार कर्यु छे ते प्लेट नं. VII ने मथाळे नीचे प्रमाणे लखेलुं छे: "Ayagapata or Tablet of Homage or of Worship', Set up by Sihanandika for the Worship of the Arhats." (6) पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारप्रथितरम्यसूत्रपटी श्रीनमस्कारमंत्रनां पांच पदोना पडिमात्रानो पाठ गूंथणीमां आवे तेवी रीते ऋषि मनोहरे रंगीन पाटी गंथी छे, एर्नु आ चित्र छे / ते संवत 1739 ना भादरवा वदि पांचमना दिवसे गूंथी छे एवं तेमां दर्शाव्यु छ / आ पाटी बार फूट लांबी अने पोणो इंच पहोळी छे अने तेमां अक्षरो सिवाय आगळ पाछळ सुशोभनो छे। ते सुशोभनो शाना संकेत छे ए समजातुं नथी। ग्रंथमाथी सूचित थता तथा अन्य ओगणीस यंत्र-चित्रोनो परिचयः(७) ॐकारवाचककलापरमेष्ठिपञ्चकस्वरूपः (पृ. 4 A) सेठ श्री अमृतलाल कालिदास दोशीना जामनगरना संग्रहमांनी एक पाटलीना चित्र उपरथी योग्य फेरफार साये आ चित्र चितरावी अहीं रजू करवामां आवेल छ /