________________ निवेदन ते पछी पञ्चनमस्कृतिदीपकमांथी बे संदर्भो तारखवामां आव्या छ। एमाथी प्रथम संदर्भमां साधनामां उपयोगी एवा दिग्, आसन, मुद्रा, काल, क्षेत्र, द्रव्य, भाव, पल्लव, कर्म, गुण, सामान्य, विशेष वगेरेनुं वर्णन छ। पंचनमस्कृतिदीपकना बीजा संदर्भमां नवकारना पदोमांथी नीकळेला अनेक मंत्रो आपवामां आव्या छ। एमां केटलाक मंत्रोना ध्याननी विशिष्ट प्रक्रियाओ पण बताववामां आवी छ। ते पछी लक्ष नमस्कार गुणनविधि नामक संदर्भमां लाख नवकारना जपनो सुंदर विधि छ। एमां बताववामां आव्युं छे के जे विधिपूर्वक भावथी लाख नवकार गणे छे तेनी जो एकाग्रता वधी जाय तो ते श्रीतीर्थकर नामकर्म उपार्जे छ। ते पछी तत्त्वानुशासन संदर्भ छ / ए ग्रंथ अमारी संस्था तरफथी पूर्वे प्रकाशित थयेल छे। ए संपूर्ण ग्रंथना अनुवादक पू. मु. श्री तत्त्वानंदविजयज आ संदर्भमां नाम-स्थापना-द्रव्य-भाव ध्येयन सुंदर वर्णन छ। एमां व्यवहारध्यान तथा निश्चयध्यान पण दर्शावेल छ / ए ज संदर्भमां अर्हना ध्याननी विशिष्ट प्रक्रिया तथा अर्हत्ना अभेद ध्यानादिनुं सुंदर वर्णन छ। आत्मसंवेदनवर्णन पण ए ग्रन्थमा अद्भुत छे / ग्रंथने रचनार दिगम्बर सम्प्रदायना ख्यातनाम आचार्य श्रीमान् नागसेन छ / एमनी अद्भुत प्रतिभा आ ग्रंथमा तरी आवे छे। ध्यानना प्रत्येक अभ्यासी माटे ए संपूर्ण ग्रंथ मननीय छ कारण के ए स्वानुभवनी उच्च भूमिका उपरथी लखाएल छे। ते पछी मातृका प्रकरण संदर्भमां प्रणवादि मंत्रबीजोना प्रत्येक अंगनुं वाच्य (अभिधेय) दर्शाववामां आव्यु छे। ते पछीना अर्हनामसहस्रसमुच्चय संदर्म अने जिनसहस्रनामस्तवन संदर्भमां श्रीअरिहंत परमास्माना एक हजार आठ नामोनी अनुष्टुप् छंदमां गुंथणी छे / ते पछी श्रीजिनसहस्रनामस्तोत्र संदर्भ आवे छे, जे गावामां आह्लाद दायक छ / एमां अरिहंत परमात्माना व्यापक स्वरूपर्नु वर्णन छे तथा तेमनी जन्मथी मांडीने निर्वाण सुधीनी अनेक अवस्थाओने नमस्कार करवामां आवेल छ / एमां अतीत-अनागत-वर्तमान चोवीशीना तीर्थंकरो, आ भूमिना वर्तमान तीर्थो, शासन, संघ, नवकारमन्त्र, सिद्धान्त, दर्शनादिशुद्धि, क्रिया, साधुधर्म, श्रावकधर्म, श्रुतदेवता वगेरेने पण नमस्कार करवामां आव्यो छे / ए संदर्भमांना जगजन्तुजीवातुजन्म (श्लो. 4), अवतीर्णाय विश्वोपकृत्यै (श्लो. 15), प्रकृत्या जगद्वत्सलाय (श्लो. 15); विश्वदारियनिस्तर्जनाय (श्लो. 50), पुनानाय कालत्रयेऽस्मान् (श्लो. 117) वगेरे विशेषणो वाचनारनुं खास ध्यान खेंचे छ / ते पछीना षोडशक प्रकरण संदर्भमां सालंबन तथा निरालंबन योगर्नु सुंदर वर्णन छ / ते पछीना शकस्तव संदर्भमां पण परमात्माना स्वरूपनी भाववाही स्तुति छ / ए मंत्रपदोथी गर्भित छ / एना पठनादिना फळोनुं वर्णन पण ए संदर्भना प्रांत भागमां छे, जे खास ध्यान आपवा लायक छ / आचार्यशिरोमणि श्री सिद्धसेन दिवाकर एना रचयिता छ / ते पछी सिद्धभक्त्यादि संग्रहमा आत्मा अने मुक्ति विषयक अन्यदर्शनीओनी मान्यतानुं खण्डन करी जैन दर्शनसम्मत आत्मा अने मुक्तिनी सिद्धिनुं प्रतिपादन कर्यु छे तथा पंचपरमेष्ठिना गुणोनुं सुंदर वर्णन छ / ते पछी श्राद्धविधिसंदर्भमां श्रावकर्नु प्राभातिककृत्य, स्वरोदयसंबंधी सुंदर वर्णन तथा नवकारना जपना प्रकारोनू वर्णन छ। उपर कहेल बधा संदर्भोनो परिचय अहीं बहु ज संक्षेपमा करावेल छ / विशेष परिचय ते ते संदर्भना * अंतमां आपवामां आवेल छ / आम संपूर्ण ग्रन्थ नवकारनी विविध विशेषताओने बतावनारो अने नवकारसंबंधी विपुल साहित्य एक जस्थळे प्राप्त थई शके तेवो बन्यो छे / तेथी नवकारना अभ्यासीओने ते बहुज उपयोगी नीवडशे।