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________________ शुद्धि पत्रकम शुद्धम् पृष्ट पनि शुद्धम् स्फरति पृष्ठ पति 241 241 22 12 રકર 28 *243 243 રક રકર 267 267 269 77 कृसिकमि श्वादिभ्यः व्यत्यशकत 228 प्रतिरित्सति ऋत्यार तृभ्रमि VV श्वादिभ्यः 114 271 इत्वे 1273 245 दघ्नोति भूज्यते ર૪૭ स्वङक्तुम् स्वक्त्वा 277 248 248 श्वादिभ्यः षान्तो कृषिचमि ऋदित्त्वाद् "ऋ ऋदित्त्वाद 278 2494 'गृलुप .250 : 13 251 રકર 278 279 279 8 नदीवल्लि. क्षिताऽऽयुः क्षी अभिषुवति 2279 कुड़यम् ऋदित्त्वाद 279 279 252 26 280 द्वे रश्चादौ ऋतष्टित् 280 *280 280 *254 254 27 . 28 *281 *281 284 द्वे रूपे ऋत गरिष्यति ऋल्वादेः गीणिः ऋतष्टित् इत्यन्ये क्विपि ऋतष्टित ल्ययोश्च तृण्णवान् पंचप् तनक्ति अतनक क्विपि क्तयोनेट इत्यये कृसिकमि क्षणोति अनुस्वारेत्त्वा सनि *र८५ 258 259 18 17 289
SR No.004315
Book TitleDhatuparayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherShahibag Girdharnagar Jain S M Sangh
Publication Year1979
Total Pages532
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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