________________ 333 ] धातुपारायणे चुरादयः (9) [345 '325 क्षप 326 लाभण प्रेरणे' / क्षपयति / अचि क्षपा // अथ भान्तः // "326 लाभण' / लाभयति / उ अललाभत् / अचि अलि वा लाम: / लभण्' इति सभ्याः ; लभितम् , विलभना / डुलभिष् प्राप्ती [ 11786 ], लभते / णिगि लम्भयति // __अथ मान्ताः पञ्च // / '327 भामण क्रोधे। भामयति / डे - अबभामत् / भामि क्रोधे [11787 ], भामते / णिगे अबीभमत् // ____ 328 गोमण उपलेपने ' / गोमयति भूमिम् / डे अजुगोमत् / उणादौ "गयहृदय०" (उ० 370 ) इति निपातनादये गोमयं गोशकृत् // '329 सामण सान्त्वने' / सान्त्वनं प्रीणनम् / सामयति, अससामत् / अपोपदेशत्वात् षत्वाभावे सिसामयिषति // .'330 श्रामण आमन्त्रणे' / श्रामयति / अशश्रामत् // '331 स्तोमण श्लाघायाम् ' / स्तोमयति / उ अतुस्तोमत् / अलि स्तोमः / " ज्योतिरायुाम्" 2 / 3 / 17 इति षत्वे अनिष्टोमः // अथ यान्तः // 332 व्ययण वित्तसमुत्सर्गे'। वित्तसमुन्सर्गस्त्यागः, गतावित्येके / व्यययति / के अवव्ययत् / अलि व्ययः / व्ययी गती [ 11918 ], व्ययते, व्ययति, अव्ययीत् / णिगि व्याययति / वित्त इति धात्वन्तरमित्येके'; वित्तयति, वित्तितः, वित्तयित्वा // अथ रान्तास्त्रयोदश // 333 सूत्रण' विमोचने' / विमोचनं मोचनाभावः, ग्रन्थनम् इति यावत् / सूत्रयति / डे असुसूत्रत् / " अट्यति० " 3 / 4 / 10 इति यङि सोसूच्यते / अचि सूत्रम् / " हेतुतच्छील०" 5 / 1 / 103 इत्यत्र सूत्रस्य वर्जनात् कर्मणोऽणि सूत्रकारः॥ 1. तुलना:-क्षी. त. पृ. 321, 317 // 2. क्षीरस्वामी, (क्षी. त. पृ. 321) / ___3. दुर्गादास: (श. क. पृ. 385) //