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________________ -3-- एम विचायुं छे. अहिं-पूज्यपाद आचार्य महाराजश्रीए खूबज जहमत ऊठावीने रचेल अने प्रकाशित थएल' श्री तत्वार्थविवरणगूढार्थदीपिका' ग्रन्थनी प्रस्तावनामां पू० पं० म० श्री-जयानन्दविजयजी गणिवर्ये 2011 मां लखेल ट्रॅक वृत्तान्त अक्षरशः उधृत करीए छीए. "तत्त्वार्थ विवरण ग्रन्थनी साक्षी अन्य ग्रन्थोमां न जणायाथी पू. श्री उपाध्यायजीए तत्त्वार्थसूत्र उपर टीका रची नहिं होय एम मानवामां आवतुं हतुं; परंतु राजनगर डेलाना उपाश्रयमांना ज्ञानभंडारना पुस्तकोनुं पत्रक बनावतां तत्त्वार्थसूचना प्रथम अध्यायनी" तत्त्वार्थविवरण" नाम नी टीका प्राप्त थई. ते टीका शासनसम्राट शासनप्रभावक पृथ्वीमंडलमुकुटायमान पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय श्रीमद् गुरुभगवंतना उपदेशथी शुद्ध करीने मुद्रित करवामां आवी एनो अभ्यास खूब खंत पूर्वक पू. गुरुदेवे कर्यो. अने एमने लाग्यु के ए ग्रन्थमां पीरसेली अनेरी वानगो सरल भाषामा विस्तारीने सौ विद्यापिपासुओने पीरसवामां आवे ए अत्यन्त इच्छनीय छे. ए कार्य हाथपर लेवानी तेओश्रीने लगनी जागी. तेमनी लगनीने शासनसम्राट् पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजश्रीजीना आशीर्वाद सांपडया. दश दश वर्षना लांबा गाला सुधी सतत परिश्रम लईने पू. गुरुदेवे 16000 श्लोक प्रमाण 'तत्त्वार्थविवरण गूढार्थदीपिका' नी रचना करी. संवत् 2001 मां मृगशिर शुद एकादशीना सर्वोत्कृष्ट कल्याणक दिवसे ए ग्रन्थ पूर्ण थयो. तेओश्री कृतकृत्य बन्या. अंधारामा रहेल ग्रन्थोने प्रकाशमां आणवानुं काम तो घणाए संशोधकोना हाथे थतुं हशे, परंतु महापुरुषे रचेलां ग्रन्थ उपर सतत चिंतन अने परिशीलन करीने तेनी विद्वत्ताभरी विस्तृत टीका रचवानुं कार्य तो पूज्य गुरुदेव जेवा कोईक विरल मानवना हाथे ज बने. पूज्य गुरुदेवनी बहुश्रुतता गुढार्थदीपिकामां खूब झलके छे. तत्त्वार्थविवरणमां भरेलो भाव पूज्य गुरुदेवे अत्यन्त प्रस्फुट करी बताव्यो छे. एमांनी प्रत्येक बाबतो उपर तेओश्रीए गृढार्थदीपिकामां खूब प्रकाश पाथर्यो छे. सुंदर अने सरल संस्कृत भाषामां गहन तत्त्वोनी सरस छणावट करी छे. न्यायशास्त्रमा अति विद्वान् पंडितोने पण जणाती तत्त्वार्थ विवरणनो कठिनता दूर करीने तेमांनां गूढ तत्त्वोने पूज्य गुरुदेवे सरल रीते अने रोचक भाषामां विस्तारथी समजाव्या छे. मूल ग्रन्थनो यथार्थ भाव गूढार्थदीपिकामां प्रगट थयो छे अने तत्त्वज्ञाननी अनेक बाबतोतुं विवरण रसमय बन्युं छे. न्यायशास्त्र विषयक निरंतर सुंदर अभ्यास, विशाल वांचन अने सतत तत्त्वविचारणाने परिणामे एक कठिण कार्य तेओश्री पूज्यपाद श्री गुरुभगवंतनी असीम कृपादृष्टिथी सुशक्य बनावी शक्या छे 'गूढार्थदीपिका' रचाती हती ते समय दरम्यान बीजा पण बे ग्रंथो पू. गुरुमहाराजश्रीए रच्या छे. 'पर्युषणापर्वकल्पप्रभा' अने ‘पर्युषणापर्वकल्पलता' नामनां आ बे ग्रंथोथी जनता अज्ञात नथी, पू. गुरुमहाराजश्रीए सर्वप्रथम 'स्याद्वादबिंदु' नामनो 3000 श्लोक प्रमाण ग्रंथ रच्यो छे. त्यार बाद परमपूज्य न्यायाचार्य न्यायविशारद उपाध्यायजी यशोविजयजो महाराजश्रीजी कृत "न्यायखंडनखाद्य" अपरनाम 'महावीरस्तव' ग्रंथनी 'महावीरस्तवकल्पलतिका' नामनी 25000 पच्चीस हजार श्लोक प्रमाण एक सुंदर . टीका रची छे. तदुपरांत तेओश्रीए पूज्यपादश्री सिद्धसेन दिवाकर रचित 'सम्मति तर्क' नामना द्रव्यानु-- योगमय अतिप्राचीन-अतिविषम जैन न्याय ग्रंथ उपर 'सम्मतितर्कमहार्णवावतारिका' नामनी अनुपम लघु टीका 16000 श्लोकप्रमाण रची छे.
SR No.004312
Book TitleShantinath Mahakavyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherNemidarshan Gyanshala
Publication Year1961
Total Pages282
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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