________________ प्रकाशकीय निवेदन सोलमा श्री शान्तिनाथ भगवानना चरित्र ने विषय करीने अनेक चरित्रग्रन्थो अने काव्यग्रन्थो रचायां छे. तेमां आ प्रस्तुत श्रीशान्तिनाथ महाकाव्य पोतानु अनोखु स्थान धरावे छे; ए ते विषयना निष्णातोने स्पष्ट समजाय एम छे. ___आ महाकाव्यनी रचना करवानुं प्रधान कारण ग्रन्थकारे जाते ज ग्रन्यने अंते जमाव्युं छे. ग्रन्थकार आचार्य महाराज श्री मुनिमद्रमुरिजी महाराज जैनशासनमा झलहलती परंपरामां थया छ- ए आ काव्यनी प्रशस्ति उपरथी स्पष्ट जणाय छे. ते परंपरा आ प्रमाणे छे. 1. श्री मुनिचन्द्रमुरिजी. 2. श्री देवमूरिजी. 3. श्री भद्रेश्वरसूरिजी. 4. , इन्दुसूरिजी. 5. , मानभद्रसू रिजी. 6. , गुणभद्रसूरिजी. 7. ,, मुनिभद्रसूरिजी. आ आचार्यश्रीने महाराजा श्री पेरोज भूपालनी राजसमामां सारं सन्मान प्राप्त थतुं हतुं ते तेमना नीचेना कथनथी समजाय छे. "श्रीपेरोजमहोमहेन्द्रसदसि-प्राप्त पतिष्ठोदयः" 6272 श्लोकप्रमाण वा महाकाव्यनी रचना तेओश्रीर विक्रमसंवत् 1410 नी सालमां करी के. एटले तेओश्रीनो सत्ताकाल चौदमी शताब्दीनो उत्तरार्ध अने पन्दरमी शताब्दीनो पूर्वार्ध हतो ए निचित छ. आ महाकाव्य सिवाय अन्य कोई अन्यनी रचना तेओधीनी उपलब्ध थती नथी, के एवो कोई उल्लेख प्राप्त थतो नथी, एटले ज्यां सुधी ए न मले त्यां सुधी बा एक ज अन्य तेओश्रीनो विरचित छ एम मानवं रहयु. आ एक ग्रन्थना साङ्गोपाङ्ग अवलोकनथो तेपोश्रीना प्रकाण्ड पांडित्यनो परिचय विद्वानोने आनायासे थई जाय एम छे. एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति, न च तारागणोऽपि च' एवी उक्ति आ ग्रन्थ तेओश्रीने अंगे सार्थक करी बतावे के एम कहेवामां अन्प पण अतिशयोक्ति नथी.