________________ 354 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् बल्वजकूटजस्थूणामूल...||३।२।८।५।१।। यज्ञवल्क: पूर्णकल्कमनुतन्तु.....॥२।३।१७।४।४।।. बल्वजेक्वटसङ्कटाश्वकूप...||२।४।६।३।१४।। यथामुखं सम्मुखमत्र दृश्य...||३।३।६।२।१।। बाहूपबाहुछगलाभगलासुमित्रा...।।२।३।१४।६।६।। यरण्येऽकीन्सवुञ् फण्ढणाः...||२।४।६।३।२॥ बाहूरुपूर्वो बलधर्मशीली..॥३।३।१०।३।२।। यसै बलाश्मादि आर्ययाहुः...||२।४।६।३।३।। बिडोध्युपाभ्यां त्यकचिल्लपिल्लं...॥२।३।१।९।४॥ यवकृम्यूमिभूमिभ्यः ककुत्पाशे....॥३।३।८।१।१।। बिल्ववेणकपोतेक्षकाष्ठ...।।२।२।३।४।१।। यवप्राण्यङ्गमाषेभ्यस्तिल.....।।३।१।१४।२।१।। भक्तौ महाराजतोऽदेशकालात्...॥३।१।१।१२।४।। यवं तथा संहृतलूनयूनात्.....॥१।४।१।६।२।। भक्तौ राज्ञः पितो वा स्वे...॥३।१।५।१।६॥ युगेदंसंसमात् सर्वविश्व...।।३।१।७।१।२।। भगवतीभागवतं चार्जुन...||१।४।४।४।४।। युग्यस्य प्रासङ्ग रथस्य वोढा....||३।१।१२।८।१।। भञ्जनकिंशुलक: स्यात्...॥२।१।६।३।३।। येनणे शौण्ड: कितवकुशलौ....॥१।४।३।५।१।। भयभीति तु भीतभियोऽल्पशः....||१।४।३।२।१॥ योगे सहादितो नाम्नी.....।।१।४।१२।१०।१॥ भा काणखञ्जौ गडुलः कडार.....||१।४।१।४।२॥ योनिविद्यायुजोऽस्मिन्मृतो....||२।१।१।१।३॥ भाजं दन्तस्तथा लिप्तवासितो...॥१।४।१।४।३॥ राक्षसवाडवदुष्पुरुषाः स्युः ....... // 3 / 3 / 5 / 2 / 2 / / भारद्वाजे भयेच्छुङ्ग आत्रेये....।।२।३।१४।५।६।। राजन्यदैवायन अर्जुनायनः.......।।२।४।५।८।१।। भावादितोऽर्थस्य गतौ षडुक्ति द्वौ.... . राजन्वृद्धौ गणे कतावहीनपृष्ठ्यौ ... / / 2 / 4 / 2 / 6 / 5 / / // 3 / 4 / 2 / 1 / 136 // रात्रिन्दिवं पदष्ठीवं नक्त...॥१।४।५।१।१॥ भिक्षासहस्रे युवतिः पदातिः.....।।२।४।२७।१॥ रामोदकाशूकितवातपाऽर्का::....।।२।३।१७।४।११।। भुक्तगतं कृतपीतमुपात्तं...॥१।४।३।६।११॥ रूपधर्मवयोवर्णगोत्रस्थानेषु......||२।१।५।३।२।। भूमनिन्दाप्रशंसासु नित्ययोगे...॥३।३।७।७।१॥ रेवतिकौदामधिभ्यां स्वापि....॥३।१।३।६।७॥ भृशौत्सुकौ पण्डितशीघ्रमद्रा....।।३।४।१।१।६।। रेवतीरोहिणीचित्राभ्यः स्त्रियां....।।३।१।५।८।२।। मण्डूककच्छपौ स्यातां नगरात्...॥१।४।३।५।३।। रोहितको वीधदारु पीतदारु......॥२।४।४।८।२॥ मध्यन्दिनलोकम्पृणो धेनु......॥२।१७।२।२।। ललाटदन्ताद् बलवाततो द्र........॥३।३।८।३।६।। मनोज्ञकल्याणप्रियाभिरूप.......||३।३।५।५।१।। ललाटिकः कौकुटिकोऽत्र साधुः मयूरव्यंसकः च्छात्रव्यंसक...॥१।४।३।६।१२।। // 3 / 2 / 1 / 3 / 12 / / मशक कृमी कर्णतोऽपि टिरिटिरा...... लुक् सर्वद्विगुसादेरकल्पादे.....।।२।४।११।७।४।। ||1 / 4 / 3 / 5 / 4|| लोकायतन्यायपदक्रमाः स्युः....... मातामहो मातुलबालिशौ देवता...॥२।३।१।९।१॥ 2 / 4 / 11 / 7 / 2 / / मांस्यवनं पृषोद्वानं मांस्य...॥२।१।४।१२।३॥ लोमन्मुनी बभ्रुहरी स्रुचश्च......॥३।३।८।३।७।। मित्रयुश्च पुनर्भूश्च गविष्ठिर...॥२।३।१७।४।१७॥ लोमन् शिरोऽन्ते च उदङ्क नाम्नि..... मित्रेतरं सुहृदुहृद् द्वित्रे.......॥१।४।५।१।४॥ // 2 / 3 / 14 / 6 / 8 / / मुनिचित्तमहाचित्तौ श्वेतमहा.....॥२।४।६।३।१०॥ लोहितपाण्डरमण्डलगोणी...॥२।३।१२।१।१॥ मुनिस्थलदशग्रामौ शर्करा...।।२।४।६।३।२७॥ वरणाखलतिगोदाः शृङ्गी...॥२।४।६।३।२८।। मुशला साहित वल्गु मनायी..।।२।३।१७।४।९॥ वराहपौ रुरुणोपमेयं कुमार....॥१।४।३।६।४।। मूलप्रदोषार्दपथिस्तु पन्थो...३।१।५।८।१।। वराहबाहुखदिराः पिनद्धः...||२।४।६।३।१८।।