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________________ व्यञ्जनसंधि मूढधीस्त्वं न जानासि छत्वं किल विभाषया। अच्छत्वपक्षे वचनं नूनं चं शे व्यवस्थितम् // 2 // तच शेते / तच् शयनम् // क्रुङ् आस्ते / सुगण् अत्र / पचन् इह / कृषन् आसते / इति स्थिते / अन्त्यात्पूर्व उपधा // 79 // धातुलिंगयोरन्त्यवर्णात्पूर्वो वर्ण उपधासंज्ञो भवति / ङणना ह्रस्वोपधाः स्वरे द्विः॥८॥ ह्रस्वोपधा: पदान्ता ङणना: स्वरे परे द्विर्भवन्ति / क्रुङ्ङास्ते / सुगण्णत्र / पचनिह / कृषन्नास्ते / अत्र रघुवर्णेभ्य इत्यादिना णत्वे प्राप्ते [असिद्धं बहिरंगमन्तरंगे] अन्तरंगे कार्ये कृते सति बहिरंग कार्य्यमसिद्धं भवति / इति णत्वे सति द्वित्वनिषेधः / पूर्व णत्वे कृते पश्चाद् द्वित्वे प्राप्ते सति / सकृद् बाधितो विधिर्बाधित एव सत्पुरुषवत् // भवान् चरति / भवान् छादयति / इति स्थिते / नोऽन्तश्चछयोः शकारमनुस्वारपूर्वम्॥८१॥ पदान्तो नकारश्चछयो: परयो: शकारमापद्यते अनुस्वारपूर्वम्। भवांश्चरति / भवांश्छादयति // भवान् टीकते / भवान् ठकारेण / इति स्थिते। इस प्रश्न पर श्री भावसेन आचार्य अपनी प्रक्रिया टीका में कहते हैं कि हे मूढ़ बुद्धे ! तू नहीं जानता कि शकार को छकार नहीं होता है तब यह सूत्र अपना कार्य करता है अर्थात् तकार को चकार कर देता है // 2 // क्रुङ् + आस्ते, सुगण + अत्र, पचन् + इह, कृषन् + आस्ते। अन्त्य से पूर्व को 'उपधा' संज्ञा है // 79 // धातु और लिंग के अंतिम शब्द से पूर्व वर्ण को-स्वर को 'उपधा' संज्ञा है। यहाँ क्रुङ् में ङ् से पूर्व उ को , सुगण में ण् से पूर्व अ को उपधा संज्ञा समझना। पदांत ङ् ण् न् की ह्रस्व उपधा से परे स्वर के आने पर ङ्ण् न् दो हो जाते हैं // 80 // . .क्रुङ् ङ् + आस्ते = क्रुडास्ते, सुग् अ ण् ण् + अत्र = सुगण्णत्र, पच् अन् न + इह = पचत्रिह, कृष् अन् न् + आस्ते = कृषन्नास्ते। - यहाँ 'कृषन्नास्ते' में न को 'रवणे' इत्यादि सूत्र से णकार प्राप्त था किन्तु अंतरंग कार्य के हो जाने पर बहिरंग कार्य असिद्ध होता है इस नियम के अनुसार णकार कर देने पर द्वित्व का निषेध हो जाता है एवं पहले णकार करके पश्चात् द्वित्व के प्राप्त होने पर भी द्वित्व नहीं हो सकेगा क्योंकि असत् पुरुष के समान एक बार बाधित विधि बाधित ही समझना चाहिए। भवान् + चरति, भवान् + छादयति। च, छ के आने पर पदांत नकार अनुस्वारपूर्वक शकार हो जाता है // 81 // भवांश्चरति, भवांश्छादयति / भवान् + टीकते, भवान् + ठकारेण /
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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