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________________ 378 कातन्त्ररूपमाला अघ पापकरणे राध साध संसिद्धो परस्मैपदी परस्मैपदी अघयति आराधयति साधयति संमिश्रित वयति विध्यति वष्टि विचति भ्वादि० दिवा० अदा० तुदा० तुदा० पृच्छति तुदा० वेञ् तंतुसंताने व्यध ताड़ने वश कांतौ व्यच् व्याजीकरणे प्रच्छ जीप्सायां भ्रस्ज् पाके पिष्ल संचूर्णने विष्ल व्याप्तौ / शिष्ल पुष् तुष् तुष्टौ शुष् शोषणे असु क्षेपणे ख्या स्पृश संस्पर्शने मृश् आमर्शने तृप् प्रीणने भज् श्रिञ् सेवायां परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी. परस्मैपदी उभयपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी उभयपदी भृञ्जति, भृञ्जते पिनष्टि वेवेष्टि शिष्यति तुष्यति पुष्यति शुष्यति अस्यति ख्याति स्पृशति मृशति रुधा० रुधा० . दिवा० दिवा० दिवा० दिवा० अदा० तु० तुदान तृप्यति दि० चुरा भजति, भजते, श्रयति, श्रयते क्षालयति कथयति तर्जयति भर्त्सयति चुरा० चुरा० चरा० अर्हति भ्वा० क्षल शौचे कथ वाक्यप्रबन्धे तर्ज भर्ल्स संतर्जने तर्ज भर्त्स संतजने अर्ह पूजायां ढौकृ तौकृ गतौ भ्राज् भाष् दीप्तौ भाष व्यक्तायां वाचि जीव प्राणधारणे चिति स्मृत्यां पद गती परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी परस्मैपदी परस्मैपदी आत्मनेपदी भ्वा० भ्वा० भ्वा० ढौकते भ्राजते भ्राषते भाषते जीवति चिंतयति पद्यते भ्वा० 광영
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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