________________ 2 // 366 कातन्त्ररूपमाला अकारादिहसीमानं वर्णाम्नायं वितन्वता। ऋषभेणार्हताधेन स्वनामाख्यातमादितः // 2 // तथाहि अ एव स्वार्थिकेणाऽका तादृग ऋ ऋषभाभिधा। तदादिर्हावधिः पाठोकारादिहसीमकः // 3 // अ: स्वरे कश्च वर्येषु रादिर्यः स तु हान्वितः। अकारादिहसीमाख्ये पाठेऽहं मंगलं पदं // 4 // यत्राहपदसंदर्भाद् वर्णाम्नायः प्रतिष्ठितः। तस्मै कौमारशब्दानुशासनाय नमोनमः // 5 // ब्राहम्या कुमार्या प्रथमं सरस्वत्याप्यधिष्ठितं / अहं पदं संस्मरंत्या तत् कौमारमधीयते // 6 // कुमार्या अपि भारत्या अङ्गन्यासेप्ययं क्रमः। अकारादिहपर्यंतस्ततः कौमारमित्यदः // 7 // . इति भद्रं भूयात्। श्लोकार्थ–श्रीमान् प्रथम तीर्थङ्कर अहंत प्रभु का यह आख्यात-व्याकरण पृथ्वी तल पर विशेषरूप से जयशील होता है। जिसके प्रसाद से यह व्याकरण संपूर्ण अर्थ को सिद्ध करने वाली होवे // 1 // ___ अकार को आदि में लेकर 'ह' सीमा पर्यंत वर्गों के समुदाय को कहते हुये श्रीमान् आदिप्रभु ऋषभदेव अर्हत् परमेष्ठी ने आदि में अपने नाम का आख्यात किया है // 2 // __ अर्थात् अर्हत् में वर्गों के समुदाय का प्रथम अक्षर 'अ' प्रथम है और वर्णों का अंतिम अक्षर 'ह' अंत में है। इसलिये आदि में आदिनाथ भगवान् ने 'अर्हत्' इस पद से अपने नाम को प्रगट किया है। तथाहि श्लोकार्थ-स्वार्थिक में अण् अक् से 'अ' ही है और उसी प्रकार ऋ से ऋषभ नाम आता है। उसको आदि में करके 'ह' पर्यंत जो पाठ है वह आकारादि से ह की सीमा तक है अर्थात् अकार आदि में है और हकार अंत में है // 3 // स्वर में 'अ' वर्गों में क है और र को आदि में करके जो है वह 'ह' से सहित है। अकार को आदि में लेकर 'ह' पर्यंत पाठ में 'अहं' पद है वह मंगलभूत पद है // 4 // जहाँ पर 'अर्ह' पद के संदर्भ से वर्गों का समुदाय प्रतिष्ठित है उस कौमार शब्दानुशासन नाम की व्याकरण को बारंबार नमस्कार होवे // 5 // ब्राह्मी और कुमारी ने प्रथम ही सरस्वती से भी अधिष्ठित 'अहं' पद का संस्मरण करते हुये इस 'कौमार' व्याकरण का अध्ययन किया है // 6 // ___ कुमारी और भारती के अंग न्यास में भी अकार को आदि में करके हकार पर्यंत यह क्रम है अत: इस व्याकरण का नाम 'कौमार' व्याकरण है // 7 // समाप्त इति भद्रं भूयात् /