________________ 362 कातन्त्ररूपमाला यपि च // 793 // वनतितनोत्यादिप्रतिषिद्धेटां पञ्चमो लोप्यो भवति आतश्च अद्भवति, यथासम्भवं धुट्यगुणे यपि च परे / प्रवत्य प्रतत्य प्रमत्य प्रहत्यं / ... वा मः॥७९४॥ प्रतिषिद्धेटां मकारो लोप्यो भवति वा यपि च परे / प्रणत्य प्रणम्य आगत्य आगम्य। . ये वा॥७९५॥ खनि वनि सनि जनामन्तस्य आकारो भवति यकारे वा / खन खनने / प्रखाय प्रखन्य प्रवाय प्रवन्य। षणु दाने / प्रसाय / प्रसन्य। जनी प्रादुर्भाव / प्रजाय प्रजन्य। . लघुपूर्वो यपि // 796 // लघुपूर्व इन् अय् भवति यपि च परे। प्रशमय्य प्रगमय्य / गण् संख्याने विगणय्य / णम् चाभीक्ष्ण्ये द्विश्च पदं // 797 // एककर्तृकयो: पूर्वकाले वर्तमानाद्धातोर्णम् क्वा च आभीक्ष्ण्ये पदं च द्विर्भवति / भोजं भोजं व्रजति / भुक्त्वा भुक्त्वा व्रजति / पांच पांच भुंक्ते / पक्त्वा पक्त्वा भुङ्क्ते / दायं दायं तुष्यति / दत्वा दत्वा तुष्यति / पायं पायं तृष्यति / पीत्वा पीत्वा तृष्यति। कर्मण्याक्रोशे कत्रः खमिञ् // 798 // कर्मण्युपपदे कृत्र: खमिञ् भवति आक्रोशे गम्यमाने। चौरंकारमाक्रोशति / अंधंकारं निरीक्ष्यते। बधिरंकारं शृणोति / पहुंकारं गच्छति / डुमिङ्-प्रक्षेपण करना परिमाय, दीङ्क्षय होना–दीङ्-अनादर करना प्रदाय, दामा आदि के ईकार को बाधित करने के लिये यह सूत्र है 'आदाय' निमाय, प्रगाय प्रपाय, प्रस्थाय अवसाय विहाय / वन तन आदि और इट् प्रतिषिद्ध धातु के पंचम अक्षर का लोप हो जाता है और आकार को अकार हो जाता है // 793 // यथासंभव धुट् अगुण और यप् के आने पर / वन्—प्रवत्य प्रतत्य प्रमत्य प्रहत्य। निषिद्ध इट् धातु के मकार का लोप विकल्प से होता है // 794 // यप् के आने पर / णम्-प्रणत्य प्रणम्य, आगत्य आगम्य / खन् वन् सन् जन् के अंत को यकार के आने पर विकल्प से आकार हो जाता है // 795 // खन्-खोदना-प्रखाय प्रखन्य, प्रवाय प्रवन्य, प्रसाय प्रसन्य प्रजाय प्रजन्य। यप् के आने पर लघु पूर्व इन् को अय् हो जाता है // 796 // गम-प्रगमय्य प्रशमय्य / गण-संख्या करना प्रगणय्य। एक कर्तृक दो धातु के पूर्व काल में वर्तमान धातु से णम् और क्त्वा प्रत्यय होते हैं और पनः पुन: में पद को द्वित्व हो जाता है // 797 // भोजं भोजं व्रजति णम् हुआ है ये अव्ययान्त पद हो गये हैं भुक्त्वा भुक्त्वा व्रजति / दायं दायं इत्यादि। कर्म उपपद में रहने पर आक्रोश अर्थ में 'कृ' धातु से 'खमिज्' प्रत्यय होता है // 798 // चौरंकारम् अंधंकारं वधिरंकारं शृणोति / इत्यादि।