________________ कृदन्त: 343 चेरग्नौ // 686 // अग्नावुपपदे चिनोते: क्विप् भवति अतीते / अग्नि चिनोतिस्म अग्निचित् / विक्रिय इन् कुत्सायाम्॥६८७॥ विक्रीणातेरतीते कुत्सायां इन् भवति / सोमं विक्रीणीतेस्म सोमविक्रयी। डुक्रीज् द्रव्यविनिमये। दृशेः क्वनिप्॥६८८॥ कर्मण्युपपदे दृशः क्वनिप् भवति अतीते / मेरुं पश्यतिस्म मेरुदृश्वा / सहराज्ञोर्युधः // 689 // __सहराज्ञोरुपपदयो: युधः क्वनिप् भवति अतीते / युध सम्प्रहारे सह युध्यतेस्म सहयुध्वा / राजानं युध्यतेस्म राजयुध्वा। कृाच // 690 // सहराज्ञोरुपपदयो: कृञ: क्वनिप् भवति अतीते / सहकृत्वा / राजकृत्वा। सप्तमीपञ्चम्यन्ते जनेर्डः // 691 // सप्तम्यन्ते पञ्चम्यन्ते उपपदे जने? भवति अतीते / जले जातं जलजं / सरसिजं संस्कारात् जातं संस्कारजं / बुद्धिजं / एवं पंकजं / नीरेज। अन्यत्रापि च // 692 // अन्यस्मिन्नप्युपपदे जने भवति अतीते / न जात: अजः / द्वाभ्यां जाते द्विजः / अभिज: / अग्रजः / अनुज: पुमांसमनुजातः / अग्नि शब्द उपपद में होने पर चिञ् धातु से क्विप् होता है // 686 // अग्नि चिनोतिस्म-अग्निचित्। विक्रीणाति धातु से कुत्सा अर्थ में 'इन्' प्रत्यय होता है // 687 // - अतीत काल में सोमं विक्रीणीतेस्म सोमविक्रयित् = सोमविक्रयी बना। कर्म उपपद में होने पर अतीत अर्थ में दृश् धातु से क्वनिप् प्रत्यय होता है // 688 // .. मेरुं पश्यतिस्म मेरु दृश्वन् = मेरुदृश्वा बना। .. सह और राजन् के उपपद में अतीत में युध् से क्वनिप् होता है // 689 // युध-प्रहार करना / सह युध्यते स्म सहयुध्वन् = सहयुध्वा / राजानं युध्यते स्म = राजयुध्वा / सह राजा के उपपद में कृज् धातु से अतीत में क्वनिप, प्रत्यय होता है // 690 // सहकृत्वा, राजकृत्वा। सप्तम्यंत और पंचम्यंत उपपद में होने पर अतीत में 'जनि' से 'उ' प्रत्यय होता है // 691 // जले जातं-जलजं डानुबंध से अन् का लोप होकर बना है। . सरसिज, संस्कारजं बुद्धिजं इत्यादि / अन्य के उपपद में भी अतीत अर्थ में जन् धातु से 'ड' प्रत्यय होता है // 692 // न जात: = अज: द्वाभ्यांजात: द्विज: अभिज: अग्रज: इत्यादि / पुमांसम्-अनुजायतेस्म-अनुजातः /