________________ 332 कातन्त्ररूपमाला ललाटे तपः // 623 // ललाटे उपपदे तपते: खश् भवति / ललाटंतपः / मितनखपरिमाणेषु पचः // 624 // एषु कर्मसूपपदेषु पच: खश् भवति / मितम्पचा ब्राह्मणी। नखंपचा यवागू: / प्रस्थंपचा द्रोणंपचा स्थाली। कूल उदुजोद्वहोः // 625 // कूले उपपदे उद्रुजोद्वहो: खश् भवति / रुजो भंगे। कूलमुद्रुजा नदी / कूलमुद्वहः समुद्रः / वहलिहाभ्रंलिहपरन्तपेरंमदाश्च // 626 // एते खशन्ता निपात्यन्ते / वहंलिहा गौः / अश्रलिहो वायुः / परंतप: खल: / इरमदा सीधुः / चकारात् वातमजन्तीति वातमजाः / श्राद्धं जहातीति श्राद्धजहा माषा: / वदेः खः प्रियवशयोः // 627 // अनयोरुपपदयोर्वदेः खो भवति / प्रियंवदः / वशंवदः / सर्वकूलाभकरीषेषु कषः // 628 // एषूपपदेषु कषते: खो भवति / कष सिषेति दण्डकधातुः / सर्वंकष: खल: / कूलंकषा नदी / अभ्रंकषो गिरिः / करीषंकषा वात्या। भयार्तिमेघेषु कृत्रः॥६२९ // ललाट उपपद में रहने पर तप् धातु से खश् प्रत्यय होता है // 623 // ललाटं तपतीति = ललाटंतपः / मित नख और परिमाण के उपपद में रहने पर पच् धातु से खश् प्रत्यय होता है // 624 // मितंपचा—ब्राह्मणी। नखंपचा-यवागू, प्रस्थंपचा-स्थाली द्रोणंपचा खारी इत्यादि। कूल उपपद में रहने पर उत् पूर्वक रुज् वह धातु से. खश् प्रत्यय होता है // 625 // रुज्-भंग करना, कूलमुद्रुजा-नदी / कूलमुद्वहः समुद्रः / वहंलिह अभ्रंलिह परन्तप इरम्मद ये खश् प्रत्ययान्त शब्द निपात से सिद्ध हुये हैं // 626 // बहलिहा-गाय, अभ्रंलिह:-वायुः, परंतप:-दुष्ट, इरंमदा-सुरा / चकार से वातं अजंति-वातमजा:, श्राद्धं जहातीति श्राद्धजहा:-उड़द। प्रिय और वश उपपद में रहने पर वद धातु से 'ख' प्रत्यय होता है // 627 // प्रियंवद: वशंवदः। सर्व कूल अभ्र और करीष उपपद में आने पर कष धातु से 'ख' प्रत्यय होता है // 628 // कष सिष ये दण्डक धातु हैं। सर्वं कषति-सर्वंकष:-दुष्टः, कूलंकषा-नदी, अभ्रंकषो-गिरिः, करीषंकषा-वात्या = आंधी। भय, ऋति और मेघ से परे कृ धातु से 'ख' प्रत्यय होता है // 629 //