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________________ कृदन्त: - 329 पुरोऽग्रतोऽग्रेषु सत्तेः // 605 // एषूपदेषु सत्तेष्टो भवति / पुरः सर: / अग्रत:सर: अग्रेसरः / __ पूर्वे कर्तरि // 606 // पूर्वशब्दे कर्तर्युपपदे सत्तेष्टो भवति / पूर्वसर: पूर्वसरी / कृषो हेतुताच्छील्यानुलोम्येष्वशब्दश्लोककलहगाथावैरचाटुसूत्रमन्त्रपदेषु // 607 // ___ अशब्दादिषु कर्मसूपपदेषु हेतौ ताच्छील्ये आनुलोम्ये कृञष्टो भवति। हेतौ यशस्करी विद्या / ताच्छील्ये श्राद्धकरः। आनुलोम्ये वचनकरः। अशब्दादिष्विति किं। शब्दकारः। श्लोककारः कलहकारः। गाथाकारः / वैरकारः / चाटुकारः। सूत्रकारः / मन्त्रकार: / पदकारः। तद्यदाद्यन्तानन्तकारबहुबाह्वहर्दिवाविभानिशाप्रभाभाश्चित्रकर्तृनान्दीकिंलिपिलिबिब लिभक्तिक्षेत्रजंघाधनुररु:संख्यास च॥६०८॥ तदादिषु कर्मसूपपदेषु कृञष्टो भवति। तत्करोतीति तत्करः तस्करः। रूढित्वात्तस्य सकारः / यत्करः / आदिकरः। अन्तकरः / अनन्तकरः / कारकरः / बहुकरः / बाहुकरः। अहस्करः। दिवाकरः / विभाकरः। निशाकरः। प्रभाकरः। भास्करः। चित्रकरः। कर्तकरः / नान्दीकरः / किं करोतीति किंकरः / लिपिकरः। लिबिकरः। बलिकरः। भक्तिकरः। क्षेत्रकर: जंघाकरः। धन:करः। अरु:करः। एककरः। द्विकरः / इत्यादि / चकारात् रजनीकरः।। भृतौ कर्मशब्दे // 609 // कर्मशब्दे उपपदे कृञष्टो भवति भृतावथ / कर्मकरो भृत्यः / पुरः अग्रत: और अग्र उपपद में होने पर 'स' से 'ट' प्रत्यय होता है // 605 // पुर: सरति इति पुर: सरः / अग्रत: सरति अग्रत: सरः / अग्रे सरति इति अग्रेसरः। - पूर्व शब्दकर्ता से उपपद में होने पर स से 'ट' प्रत्यय होता है // 606 // पूर्वं सरति इति पूर्वसरः पूर्वसरी।। शब्द, श्लोक, कलह, गाथा, वैर, चाटु सूत्र, मंत्र इनको छोड़कर अन्य कर्म के उपपद में रहने पर 'कृ' धातु से हेतु तत्स्वभाव और अनुलोम अर्थ में 'ट' प्रत्यय होता है // 607 // हेत अर्थ में यशः करोति इति = यशस्करी-विद्या। तत्शील अर्थ में श्राद्धं करोतीति-श्राद्धकरः / अनुलोम अर्थ में-वचनं करोति-वचनकरः / शब्द श्लोक आदि को छोड़कर ऐसा क्यों कहा ? शब्दं करोति इति-शब्दकार: श्लोककार: इनमें अण् प्रत्यय हुआ है। __ तदादि उपपद में एवं आदि, अंत, अनंत, कार, बहु, बाहु, अहर् दिवा विभा, निशा, प्रभा, भास्, चित्र, कर्तृ, नान्दी, किं, लिपि, लिबि, बलि, भक्ति, क्षेत्र, जंघा, धनुष, अरुष और संख्यावाची शब्दों के उपपद में रहने पर 'कृ' धातु से 'ट' प्रत्यय होता है // 608 // तत्करोतीति = तत्कर: 'रूढित्वात् तस्य सकारः।' नियम से त को 'स' होकर तस्कर: बना। यत्कर: आदिकर: इत्यादि / चकार से रजनीकर: आदि भी लेना चाहिये। कर्म शब्द उपपद में होने पर भृत्य अर्थ में 'कृ से ट' प्रत्यय होता है // 609 // कर्म करोति इति—कर्मकर: भृत्यः /
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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