________________ 326 कातन्त्ररूपमाला कर्मण्युपपदे धातोरण् भवति। कुम्भं करोतीति कुम्भकारः। एवं काण्डलाव: / वेदाध्याय: / कुम्भकारी। हावामश्च // 585 // एभ्य: कर्मण्युपपदे अण् भवति / मित्राह्वाय: / तन्तुवाय: / धान्यमाय:। शीलिकामिभक्षाचरिभ्यो णः॥५८६ // एभ्यो णो भवति कर्मण्युपपदे / दधिशीला। दधिकामा। दधिभक्षा / कल्याणाचारा स्त्रां। आतोऽनुपसर्गात्कः / / 587 // कर्मण्युपपदेऽनुपसर्गादाकारान्ताद्धातो: को भवति / धनु ददातीति धनदः / एवं सर्वज्ञः / नाम्नि स्थश्च // 588 // नाम्नि उपपदे तिष्ठतिराकारान्ताच्च को भवति। समे तिष्ठतीति समस्थ: / कूटस्थ: / कच्छेन पिबतीति कच्छप: / द्वाभ्यां पिबतीति द्विपः / तुन्दशोकयोः परिमृजापनुदोः॥५८९॥ तुन्दशोकयोः कर्मणोरुपपदयोः परिमृजापनुदिभ्यां को भवति। तुन्दं परिमाष्टर्टीति तुन्दपरिमृज: अलस: / एवं शोकमपनुदतीति / शोकापनुदः / आनन्दकारी। ज्ञः॥५९०॥ कर्मणि प्रोपपदे दाज्ञाभ्यां को भवति / प्रदः / पथि प्रज्ञः / समि ख्यः // 591 // कर्मणि समि चोपपदे ख्याते: को भवति। कुम्भं करोति कुम्भकार: काण्डं लुनातीति = काण्डलाव: / वेदं अधीते = वेदाध्याय: / स्त्रीलिंग में कुम्भकारी इत्यादि। ह्वा, वा, मा से कर्म उपपद में अण् होता है // 585 // मित्रं आह्वयती = मित्राह्वाय, तंतुं वयति = तंतुवाय: धान्यं मिमीते = धान्यमाय: / कर्म उपपद से शील काम भक्ष चर के आने पर 'ण' प्रत्यय होता है // 586 // दधिशीला, दधिकामा, दधिभक्षा, कल्याणाचारा। कर्म उपपद में होने पर उपसर्ग रहित आकारान्त धातु से 'क' प्रत्यय होता है // 587 // कानुबंध से अंत स्वर का लोप हो जाता है। धनं ददातीति = धनदः सर्वंजानातीति = सर्वज्ञः / ' नाम उपपद में होने पर स्था और आकारान्त धातु से 'क' प्रत्यय होता है // 588 // समे तिष्ठतीति समस्थ: कूटस्थ: स्वस्थ: / कच्छेन पिबतीति कच्छपः, द्वाभ्यां पिबतीति द्विपः / तुंद और शोक उपपद में होने पर परिमृज् अपनुद से 'क' प्रत्यय होता है / / 589 // तुंदं परिमार्टि इति = तुंदपरिमृजः,-आलसी, शोकं अपनुदतीति शोकापनुद:-आनन्दकारी। प्र उपपद में दा ज्ञा से 'क' प्रत्यय होता है // 590 // प्रकर्षेण ददाति = प्रद: पथि प्रज्ञः। सम् उपपद में रहने पर ख्या से 'क' प्रत्यय होता है // 591 // .