________________ 324 कातन्त्ररूपमाला समाङो स्रुवः // 571 // समाङो: स्रवतेों भवति / संस्राव: / आस्राव / समाङोरिति किं ? परिस्रवः। . अवे हृषोः // 572 // अव–उपपदे हरते: स्यतेश्च णो भवति / हज हरणे / अवहारः / षोऽन्तकर्मणि / अवसाय: / दिहिलिहिश्लिषिश्वसिव्यधतीण्श्यातां च // 573 // एषां णो भवति / दिह उपचये। देहः / लिह आस्वादने / लेहः / श्लिष आलिङ्गने श्लेषुः / श्वस प्राणने श्वास: / व्यध ताडने व्याधः / अत्याय: / च्युङ्छ्यु ङ ज्यु ग्युअङ् गाङ् श्यैङ् गतौ / अवश्यायः / दाय: / पायः / प्रत्याय इत्यादि। ग्रहे // 574 // ग्रहे णो भवति / ग्राहो जलचर: ग्रहः / . स्वरवृदृगमिग्रहामल // 575 // स्वरान्ताद् वृदृगमिग्रहिभ्यश्च अल् भवति घोपवादः। गेहे त्वक् // 576 // ग्रहेगेंहेऽभिधेये तु अग्भवति / गृह्णातीति गृहं / गृहं दारा:। नृतिखनिरञ्जिभ्य एव शिल्पिनि वुस् // 577 // अभ्य एव शिल्पिनि अभिधेये वुस् भवति / नर्तक: नर्तकी खनक: खनकी / रंज रागे। सम् आङ् पूर्वक स्रु धातु से अण् होता है // 571 // संस्राव: आस्राव, सम् आङ् से ही हो ऐसा क्यों कहा ? परिस्रवः। , अव उपपद सहित हू, सो धातु से अण् होता है // 572 // अवहार: अवसाय:। दिह, लिह, श्लिष, श्वस, व्यध, इण, शो धातु से परे 'ण' प्रत्यय होता है // 573 // णानुबन्ध से गुण होकर दिह = देहः, लिह = लेहः, श्लिष = श्लेष:, श्वस् = श्वास:, व्यध = व्याध: अति पूर्वक इण् को अत्याय: श्यैङ्-गमन करना ‘अवश्यायः' दाय: पाय: ‘आयिरिच्यादतानां' से आय हुआ है। प्रत्याय: इत्यादि। ग्रह धातु से विकल्प से 'ण' होता है // 574 // ग्राह: जलचर: ग्रहः / स्वरान्त और वृ दृ गम ग्रह से परे 'अल्' प्रत्यय होता है // 575 // घञ् का अपवाद हो जाता है। ग्रह धातु से घर अर्थ में अव् प्रत्यय होता है // 576 // संप्रसारण होकर गृहं बनता है। . नृत, खन् रंजि से शिल्पी अर्थ में वुस् प्रत्यय होता है // 577 // नर्तक: नर्तकी, खनक: खनकी। रंज—राग करना।