________________ 270 कातन्त्ररूपमाला राजिभ्राजिभ्रासिभ्लासीनां वा // 318 // एषां वा एत्वं भवति अभ्यासलोपश्च परोक्षायामगुणे। राज़ दीप्तौ / रराज रेजतु: रराजतु: रेजुः रराजुः / रेजिथ रराजिथ / थलि च सेटि वा एत्वमभ्यासलोपश्च / रेजथु: रराजथु: रेज रराज / रराज रेजिव रराजिव रेजिम रराजिम / रेजे रजाजे रेजाते रराजाते रेजिरे रराजिरे / रेजिषे रराजिषे रेजाथे रराजाथे रेजिट्वे रराजिवे / रेजे रराजे रेजिवहे रराजिवहे रेजिमहे रराजिमहे / भ्रासृट् भ्राज़ट भ्लास्सृट् दीप्तौ / भेजे बभ्राजे। भ्रेसे बभ्रासे। भ्लेसे बभ्लासे। कास भास दीप्तौ। चकासे चकासाते चकासिरे / चकासिषे चकासाथे चकासिध्वे। चकासे चकासिवहे। चकासिमहे। एवं बभासे बभासाते बभासिरे / एकव्यञ्जनमध्यगतस्येति किं ? ननन्द ननन्दतुः ननन्दुः ननन्दिथ ननन्दथुः ननन्द ननन्दिव ननन्दिम / परोक्षायामिन्धिश्रन्थिग्रन्थिदम्भीनामगुणे // 319 // - इन्धिश्रन्थिग्रन्थिदम्भीनामनुषङ्गलोपो भवति परोक्षायामगुणे / इत्यनेनानुषगलोप: / जिइन्धि दीप्तौ। समीधे समीधाते समीधिरे। ___तृफलभजत्रपश्रन्थिदम्भीनां च // 320 // एषामुपधाया अस्य एत्वं भवति अभ्यासलोपश्च परोक्षायामगुणे सेटि थलि च / तृ प्लवनतरणयोः / . . 19 // . ततार। ऋदन्तानां च // 321 // ऋदन्तानां गुणो भवति परोक्षायामगुणे / तेरतुः तेरुः / तेरिथ तेरथु: तेर / ततार ततर तेरिव तेरिम / फल निष्पत्तौ / पफाल फेलतः फेलः / भज श्रीङ सेवायां / बभाज भेजतः भेजः / त्रपुष लज्जायां / त्रेपे पाते वेपिरे / श्रन्थ ग्रन्थ संदर्भे / शश्रन्थ श्रेथतुः श्रेथुः / निरनुषङ्गैः तृप्रभृतिभि: साहचर्यादभ्यासलोप: अकारस्य एत्वं च न स्यात् / शश्रन्थिथ / जग्रन्थ / ग्रेथतुः ग्रेथुः / जग्रन्थिथ / दम्भू दम्भे। ददम्भ देभतुः देभुः / ददम्भिथ / अन्यत्र नानुषगलोप इति किं ? ननन्द ननन्दतुः ननन्दुः / ननन्दिथ / सस्रंसे / बभ्रंसे / दध्वंसे। ___ परोक्षा के अगुणी में राजि, भ्राजि, भ्रासि और भ्लासि धातु को एत्व विकल्प से होता है और अभ्यास का लोप हो जाता है // 318 // ___राज-दीप्त होना / रराज, रेजतुः रराजतुः / रेजु, रराजुः / थल में इट् के आने पर एत्व और अभ्यास का लोप विकल्प से होता है / रेजिथ, रराजिथ / सारे ही रूप विकल्प से दो दो रहेंगे / आत्मनेपद में भी दो दो रहेंगे / रेजे, रराजे / रेजाते, रराजाते / भ्रासृट् भ्राज़ट् भ्लासृट-दीप्त होना / भेजे, बभ्राजे / प्रेसेसे-बभ्रासे / भ्लेसे बभ्लासे / कास भास-दीप्त होना / चकासे चकासाते चकासिरे / बभासे बभासाते बभासिरे / 'एकव्यंजनमध्यगतस्य' ऐसा क्यों कहा है ? ननन्द ननन्दतुः ननंदुः। परीक्षा में अगुण विभक्ति के आने पर इन्धि श्रन्थि ग्रन्थि और दंभि धातु के अनुषंग का लोप हो जाता है // 319 // जि इन्धी–दीप्त होना / अनुषंग का लोप होकर सम् उपसर्ग पूर्वक समीधे समीधाते समीधिरे / परीक्षा के अगुण में इट् सहित थल् के आने पर तृ फल भज् त्रप् श्रन्थि ग्रन्थि और दंभि की उपधा के अकार को एकार और अभ्यास का लोप होता है // 320 // तृ-प्लवन और तरना। ततार। ___परोक्षा के अगुणी में ऋदन्त को गुण हो जाता है // 321 // 1. उपधा को दीर्घ होता है।