________________ 268 . कातन्त्ररूपमाला आमः कृअनुप्रयुज्यते // 307 // आमन्तस्य कृअनुप्रयुज्यते परोक्षायां / द्विवचनं / .. ऋवर्णस्याकारः // 308 // अभ्यास ऋवर्णस्याकारो भवति। सर्वत्रात्मने // 309 // सर्वेषां धातूनां गुणो न भवति परोक्षायामात्मनेपदे सर्वत्र / अधाञ्चक्रे एधाश्चक्राते एधाश्चक्रिरे / ___ कृञोऽसुटः // 310 // __ असुटः कृत्र: परोक्षायां थलि चानिड् भवति / एधाञ्चकृषे एधाञ्चक्राथे एधाञ्चकृट्वे / एधाञ्चक्रे एधाञ्चकृवहे एधाञ्चकृमहे / __ असु भुवौ च परस्मै // 311 // आमन्तस्यासु भुवावप्यनुप्रयुज्यते परस्मैपदे परे परस्मैपदं चातिदिश्यते / एधामास एधामासत्तुः एधामासुः। एधामासिथ एधामासः एधामास। एधामास एधामासिव एधामासिम। एधांबभूव एधांबभूवतुः एधांबभूवुः / अस्योपधायामित्यादिना दीर्घः / पपाच। / परोक्षायां च // 312 // सर्वेषां धातूनां गुणो न भवति परोक्षायां परस्मैपदे द्वित्वबहुत्वयोः परत:। अस्यैकव्यञ्जनमध्येनादेशादेः परोक्षायाम्॥३१३ // अनादेशादेर्धातोरेकव्यञ्जनमध्यगतस्यास्य एत्वं भवत्यभ्यासलोपश्च परोक्षायामगुणे / पेचतुः पेचु / अभ्यास के ऋ वर्ण को अकार हो जाता है // 308 // आत्मने पद में परीक्षा में सभी धातु को गुण नहीं होता है // 309 // एधांचक्रे। आते इरे। एधांचक्राते एधांचक्रिरे / परोक्षा में थल् के आने पर सुट् रहित कृ धातु अनिट् होता है // 310 // एधांचकृषे, एधांचक्राथे, एधांचवे / एधांचक्रे एधांचकृवहे एधांचकृमहे / परस्मैपद में आम के अन्त में असु और भू धातु का प्रयोग होता है // 311 // और परस्मैपद ही होता है। एधामास एधामासतुः एधामासुः एधांबभूव, एधांबभूवतुः एधांबभूवुः / पच् पच् पपच 'अस्योपधायाम्' इत्यादि से दीर्घ होकर पपाच बना। परोक्षा में परस्मैपद में द्वित्व-बहुत्व विभक्ति के आने पर सभी धातु को गुण नहीं होता है // 312 // आदेश रहित एक व्यंजन मध्यगत धातु के अकार को ‘एकार' हो जाता है // 313 // और परीक्षा में अगुण विभक्ति के आने पर अभ्यास का लोप हो जाता है। पेचतुः पेचुः / श्लोकार्थ-अकारांत, स्वरांत सृज् और दृश धातु से थल् विभक्ति के आने पर विकल्प से इट् होता है। ऋच् में नित्य ही अनिट् रहता है / वृ और व्येङ धातु से थल् के आने पर नित्य ही इट् होता है।