________________ तिङन्त: 249 अद्यतनीक्रियातिपत्त्योर्गी वा // 236 // अद्यतनीक्रियातिपत्त्योरात्मनेपदे परे इङो वा गी आदेश इष्यते। इवर्णादश्विश्रिङीड्शीङ // 237 // शिवश्रिडीशीवर्जितादेकस्वरादिवर्णात्परमसार्वधातुकमनिङ् भवति। आदेशबलादगुणित्वे / अध्यगीष्ट अध्यगीषातां अध्यगीषत / अध्यगीष्ठा: अद्यगीषाथां / सिचो धकारे // 238 // सिचो लोपो भवति धकारे परे। नाम्यन्ताद्धातोराशीरद्यतनीपरोक्षासु धो ढः // 239 // नाम्यन्ताद्धातोराशीरद्यतनीपरोक्षासु धो ढो भवति। अध्यगीढ्वं / अध्यगीषि अध्यगीष्वहि अध्यगीष्महि / पक्षे स्वरादीनां वृद्धिरादेः / अध्यैष्ट अध्यैषातां अध्यैषत / अध्यैष्ठा: अध्यैषाथां अध्यैवं / अध्यैषि अध्यैष्वहि अध्यैष्महि / परस्मै इति किम् ? भूप्राप्तौ // 240 // भूधातो: भूप्राप्तावात्मनेपदी भवति / अभविष्ट अभविषातां अभविषत / अभविष्ठा: अभविषाथां अभविढ्वं / अभविषि अभविष्वहि / अभविष्महि / समवप्रविभ्यश्चेति स्था रुचादिः / स्थादोरिरद्यतन्यामात्मने // 241 // स्थादासंज्ञकयोरन्तस्य इर्भवति अद्यतन्यामात्मनेपदे परे। अद्यतनी और क्रियातिपत्ति में आत्मनेपद के आने पर 'इङ्' को विकल्प से 'गी' आदेश होता है // 236 // श्वि, श्रि, डीङ्, शीङ् को छोड़कर एक स्वरादि वर्ण से परे असार्वधातुक अनिट् होते हैं // 237 // . .. आत्मनेपद में 'त' विभक्ति में अध्यगीष् में सिच पर में रहते गुण क्यों नहीं हुआ गी आदेश करने से गुण नहीं होता है अध्यगीष्ट बना, इसमें सिच् का आगम होकर स् को ष् हुआ है और ष् के निमित्त से तवर्ग को टवर्ग हुआ है / अध्यगीष्ध्वं है। . धकार के आने पर सिच् का लोप हो जाता है // 238 // नाम्यंत धातु से आशी अद्यतनी और परोक्षा में 'ध' को द हो जाता है // 239 // अत: अध्यगीढ्वं बना / पक्ष में जब 'गी' आदेश नहीं हुआ तब 'इ' को 'स्वरादीनां वृद्धिरादेः' सूत्र 48 से पूर्व स्वर को वृद्धि होकर सिच् होकर 'अध्यैष्ट' बना। परस्मैपद में ऐसा क्यों कहा ? ... भू धातु प्राप्ति अर्थ में आत्मनेपदी होता है // 240 // आत्मनेपद में 'सिच् इट्' होकर 'अभविष्ट' बनेगा। सम्, अव, प्र, वि उपसर्ग से परे स्था धातु रुचादि हो जाता है अर्थात् इन उपसर्गों के योग से स्था धातु आत्मनेपद में चलता है / सम् अस्था त / आत्मनेपद में अद्यतनी से स्था, दा संज्ञक धातु के अंत को इकार होता है // 241 //