________________ तिङन्तः 247 सार्वं तीर्थकराख्यानं धातोस्तत्प्रकृतेरभूत्। शास्त्रमेतत् तत्र मुख्यं सार्वधातुकमुच्यते // 1 // इत्याख्याते सार्वधातुकं अथाऽसार्वधातुकमुच्यते भूतकरणवत्यश्च / / 225 // इति अतीतमात्रे अद्यतनी भवति अद्यभवोऽद्यतन: / तत्रातीतेऽद्यतनी भवति / भू सत्तायां / सिजद्यतन्याम्॥२२६ // धातो: सिज्भवति अद्यतन्यां परत:। इडागमोऽसार्वधातुकस्यादिव्यञ्जनादेरयकारादेः / / 227 // धातो: परस्य व्यञ्जनादेरयकारादेरसार्वधातुकस्यादाविडागमो भवति / इणिक्स्थादापिबतिभूभ्यः सिचः परस्मै / / 228 / / इणादिभ्यः परस्य: सिचो लुग्भवति परस्मैपदे परे / भवतेः सिज्लुकि // 229 // भुव इडागमो न भवति सिज्लुकि। भाव और कर्म में—गुण्ड्यते / सञ्ज्यते / पाल्यते। अय॑ते / इत्यादि। इसी प्रकार से सभी धातुओं के रूप चला लेना चाहिये। इस प्रकार से चुरादिगण समाप्त हुआ। - सभी का हित करने वाले तीर्थंकर भगवान् के उपदेश में धातु और प्रकृति का शास्त्र हुआ है उममें भी सार्वधातक प्रकरण मुख्य कहा जाता है // 1 इस प्रकार से आख्यात में सार्वधातुक प्रकरण समाप्त हुआ। अथ असार्वधातुक प्रकरण प्रारंभ होता है। __भूतकाल में अद्यतनी होती है // 225 // अतीत मात्र के अर्थ में अद्यतनी होती है। आज का ही होने वाला भूतकाल ‘अद्यतन' कहलाता है। उस अतीत काल में अद्यतनी होती है। भू-सत्ता अर्थ में है। अद्यतनी परे धातु से सिच् प्रत्यय होता है // 226 // धातु से परे यकारादि रहित, व्यञ्जनादि जो असार्वधातुक उसकी आदि में 'इट्' का आगम होता है // 227 // ___परस्मैपद में इण् इक् स्था दा पिब् और भू धातु से परे सिच् का 'लुक्' हो जाता है // 228 // सिच् का लुक् होने पर 'भू' से इट् का आगम नहीं होता है // 229 // / 1 इण्स्था -इत्यादि सूत्रं हस्तलिखिते पुस्तके वर्तते / इक तत्र न गृहीतं /