________________ तिङन्तः 245 व्यञ्जनान्तात् क्यादेविकरणसंज्ञक आनो भवति हौ परे / गृहाण गृह्णीतात् गृह्णीतं गृह्णीत / गृह्णानि गृह्णाव गृह्णाम / गृह्णीतां / अक्रीणात् अक्रीणीतां अक्रीणन् / अक्रीणा: अक्रीणीतं अक्रीणीत / अक्रीणां अक्रीणीव अक्रीणीम / अवृणीत अवृणातां अवृणत / अवृणीथा: अवृणाथां अवृणीध्वं / अवृणि अवृणीवहि अवृणीमहि / अगृह्णात् अगृह्णीत / भावकर्मणो:-विक्रीयते / वियते / गृह्यते / पूञ् पवने। प्वादीनां ह्रस्वः // 218 // * प्वादीनां ह्रस्वो भवति स्वविकरणे परे / पुनाति पुनीत: पुनन्ति / पुनीयात् पुनीयातां पुनीयुः / पुनातु पुनीतात् पुनीतां पुनन्तु / पुनीहि पुनीतात् पुनीतं पुनीत / पुनानि पुनाव पुनाम / अपुनात् अपुनीतां अनुनन् / अपुना: अपुनीतं अपुनीत। अपुनां अपुनीव अपुनीम। एवं लूञ् छेदने। लुनाति / लुनीत लुनन्ति / अलुनात् / ज्ञा अवबोधने। ज्ञश्च // 219 // ज्ञश्च स्वविकरणे जा भवति / जानाति जानीत: जानन्ति / जानीयात् / जानातु जानीतात् जानीतां जानन्तु / अजानात् अजानीतां अजानन् इति क्यादिः / अथ चुरादिगणः चुर स्तेये। चुरादेव // 220 // चुरादेः कारितसंज्ञक इन् भवति स्वार्थे / उपधाया गुणः / ते धातवः // 221 // गृहाण। गृह्णीतां / अक्रीणात् दि सि विभक्ति गुणी हैं। अत: विकरण को ईकार नहीं हुआ। अवृणीत / अगृह्णात् / अगृह्णीत / भाव और कर्म में-क्रीयते, विक्रीयते / 'यणाशिषोर्ये' सूत्र 198 से इकार का आगम होकर वियते बना / गृह्यते / पूज्-पवित्र करना।। अपने विकरण के आने पर पू आदि को ह्रस्व हो जाता है // 218 // पुनाति पुनीत: पुनन्ति / पुनीयात् / पुनातु / पुनीहि / अपुनात्। लूज्-छेदना 'लुनाति' लुनीत: लुनन्ति / अलुनात् / ज्ञा-समझना। ___ स्वविकरण के आने पर 'ज्ञा' को 'जा' हो जाता है // 219 // जानाति / जानीयात् / जानातु / जानीहि / अजानात्। ' इस प्रकार से क्यादि गण समाप्त हुआ। अब चुरादिगण प्रारम्भ होता है। चुर् धातु-चुराना। चुरादिगण में स्वार्थ में कारित संज्ञक 'इन्' होता है // 220 // और उपधा को गुण हो जाता है 'चोरि' बना / पुन: वे सन् आदि प्रत्ययान्त धातु संज्ञक हो जाते हैं // 221 //