________________ 202 कातन्त्ररूपमाला नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गुणो भवति / इति गुणे प्राप्ते न णकारानुबन्धचेक्रीयतयोः // 33 // नाम्यन्तानां नाम्युपधानां च गुणो न भवति णकारानुबन्धचेक्रीयतयोः परत:। भावे-भूयते / कर्मणि प्रादय उपसर्गाः क्रियायोगे॥ 34 // प्रादय: क्रियायोगे उपसर्गा भवन्ति / के ते प्रादय: ? प्रपराऽपसमन्ववनिर्दुरभिव्यधिसूदतिनिप्रतिपर्यपयः / उपआडितिविंशतिरेष सखे उपसर्गगण: कथित: कविभिः // 1 // अकर्मका अपि धातव: सोपसर्गा: सकर्मका भवन्ति / अनुभूयते। . आते आथे इति च // 35 // अकारात्परयोराते आथे इत्येतयोरादिरिर्भवति। अनुभूयेते। अनुभूयन्ते। अनुभूयसे अनुभूयेथे अनुभूयध्वे। अनुभूये अनुभूयावहे अनुभूयामहे / एवं सर्वधातूनां / एधबृद्धौ। कर्तरि रुचादिङअनुबन्धेभ्यः // 36 // इस सूत्र में 'भू' को गुण प्राप्त था किन्तुणकारानुबंध और चेक्रीयत (यडन्त) प्रकरण के आने पर गुण नहीं होता है // 33 // . ___णानुबंध और चेक्रीय के आने पर नाम्यंत और नामि उपधा वाले धातु को गुण नहीं होता है। अत: भाव में 'भूयते' बन गया। कर्म की विवक्षा में ___क्रिया के योग में 'प्र' आदि उपसर्ग होते हैं // 34 // वे प्रादि उपसर्ग कौन हैं ? श्लोकार्थ-प्र, पर, अप, सं, अनु, अव, निर्, दुर, अभि, वि, अधि, सु, उत्, अति, नि, प्रति, परि, अपि, उप, आङ्, हे सखे ! इस प्रकार से कवियों ने ये उपसर्गगण बीस बतलाये हैं // 1 // अकर्मक भी धातु उपसर्ग सहित होकर सकर्मक बन जाते हैं। अकर्मक भू धातु में 'अनु' उपसर्ग लगाने से उसका अर्थ अनुभव करना हो गया है अत: 'अनुभूयते' बन गया। कर्म में सभी वचन और प्रथम, मध्यम, उत्तम पुरुष होने से आत्मने पद की सभी विभक्तियाँ आयेंगी। अत:-'अनुभूय आते' अकार से परे आते, आथे की आदि को 'इ' हो जाता है // 35 // अनुभूय+ इते = अनुभूयेते, अनुभूय + अन्ते सूत्र 26 से अकार का लोप होकर 'अनुभूयन्ते' बना। अनुभूय + ए है। सूत्र 26 से एक अकार का लोप होकर 'अनुभूये' बना। अनुभूय+वहे, हे, सूत्र 29 से व, म के आने पर अकार को दीर्घ हो जाता है अत: 'अनुभूयावहे' 'अनुभूयामहे' / बना। अनुभूयते अनुभूयन्ते अनुभूयसे अनुभूयेथे अनुभूयध्वे अनभये अनुभूयावहे अनुभूयामहे ऐसे ही सभी धातुओं के रूप चलेंगे। एधङ् धातु वृद्धि अर्थ में है। अनुभूयेते