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________________ तद्धितं 185 अवधिमात्रात् / अवधिमात्रादिति कोऽर्थः ? प्रयोगमात्रादित्यर्थः / इत्यनेन सूत्रेण तस्प्रत्ययो भवति / ग्रामात् ग्रामत: / प्रयोगात् प्रयोगतः / एवं वृक्षात् वृक्षत: / पटत: / घटतः। तत्रेदमिः॥५२१॥ तेषु विभक्तिसंज्ञकेषु प्रत्ययेषु परत इदम् इकारतां प्राप्नोति / अस्मात् इतः / तदकारताम्॥५२२॥ तेषु तकारादिषु विभक्तिसंज्ञकेषु परत एतद्शब्द अकारतां प्राप्नोति। एतस्मात् अत: / तकारादिष्विति किं ? एतेन प्रकारेण एतधा। तहोः कुः // 523 // तकारहकारयोः परयो: किंशब्द: कुर्भवति / कस्मात् कुतः / त्रः सप्तम्याः // 524 // सप्तम्यन्ताद् यादिवर्जितात्सर्वनाम्नो बहोश्च परत: त्रप्रत्ययो भवति / सर्वस्मिन् सर्वत्र / एतस्मिन् अत्र / कस्मिन् कुत्र / अमुष्मिन् अमुत्र / तस्मिन् तत्र / यस्मिन् यत्र / बहुषु बहुत्र / अयादेरिति किं ? द्वयोः / त्वयि / मयि / इत्यादि। आधादिभ्यः सप्तम्यन्तेभ्यश्च // 525 // सप्तम्यन्तेभ्य आधादिभ्यश्च परस्तस प्रत्ययो भवति / आदौ आदित: / एवं मध्ये मध्यतः। अन्ते अन्तत: / अग्रे अग्रत:'। मुखे मुखतः / पृष्ठे पृष्ठतः / पाश्र्वे पार्श्वत: / पूर्वे पूर्वत: / परे परत इत्यादि / विभक्ति का लोप होने से विभक्ति के आश्रित जो इदम् को 'अ' हुआ था वह भी निमित्त के अभाव में नैमित्तिक का अभाव हो जाता है' इस नियम से इदम् रह गया है इदम् = तस् है / . इन विभक्ति संज्ञक प्रत्ययों के आने पर इदं को 'इ' हो जाता है // 521 // ___ तब 'इत:' बना। एतस्मात् से तस् प्रत्यय हुआ है। उन तकारादि विभक्ति संज्ञकों के आने पर एतद् शब्द को अकार हो जाता है // 522 // एतस्मात् = अत: बन गया। तकार आदि वाली विभक्तियों के आने पर ऐसा क्यों कहा ? तो एतेन प्रकारेण से प्रकार अर्थ में धा प्रत्यय होने से 'एतधा' बना यहाँ धकार आदि विभक्ति होने से एतद को 'अ' नहीं हुआ है। तकार, हकार से परे किं शब्द को 'कु' आदेश हो जाता है // 523 // कस्मात्=कुतः, सप्तम्यंत से परे 'त्र' प्रत्यय होता है // 524 // द्वि आदि वर्जित सप्तम्यंत सर्वनाम और बहु शब्द से परे 'त्र' प्रत्यय होता है। सर्वस्मिन् त्र, सर्व+ङि,त्र विभक्ति का लोप होकर सर्वत्र हआ। इसमें भी लिंग संज्ञा होकर सि आदि विभक्तियाँ आयेंगी पुन: 'अव्ययाच्च' सूत्र से विभक्ति का लोप हो जावेगा क्योंकि ये सभी प्रत्यय अव्ययसूचक हैं। ___एतस्मिन् =अत्र, कस्मिन् = कुत्र, अमुस्मिन् =अमुत्र, तस्मिन् = तत्र, यस्मिन् = यत्र, बहुषु = बहुत्र / द्विआदि को छोड़कर ऐसा क्यों कहा? द्वयोः, त्वयि, मयि, इनमें त्र प्रत्यय नहीं होता है। सप्तम्यंत आदि प्रभृति शब्दों से परे तस् प्रत्यय होता है // 525 // आदौ = आदित:, मध्ये = मध्यत:, अंते = अंतत:, अग्रे = अग्रतः, मुखे = मुखत:, पृष्ठे = पृष्ठतः, पावें = पार्श्वत:, पूर्वे-पूर्वस्मिन् वा पूर्णत: परे परस्मिन् वा = परत: इत्यादि।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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