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________________ तद्धितं . 183 कतिपयात्कतेश्च पूरणेऽर्थे थो भवति डे परे / कतिपयानां पूरण: कतिपयथ: / कतीनां पूरण: कतिथः / कतिपयथी। कतिथी / कतिपयथं / कतिथं / विंशत्यादेस्तमट्॥५१६ // विंशत्यादेस्तमट् प्रत्ययो भवति पूरणेऽर्थे / विंशतितमः / विंशत: पूरणी विंशतितमी। विंशतितमं / त्रिंशत: पूरण: त्रिंशत्तमः / त्रिंशत्तमी। त्रिंशत्तमं / चत्वारिंशत्तमः / पंचाशत्तमः / उत्तरत्र नित्यग्रहणादिह विकल्पो लभ्यते / उत्तरत्र नित्यग्रहणं क्वास्ते ? नित्यं शतादेरित्यत्र / यत्र संख्या विद्यते तत्र विकल्पेन तमट् भवति। // 517 // विंशतेरपि तेलोपो भवति डानुबन्धे प्रत्यये परे / अपिशब्दात् अस्य लोपो भवति / विंश: / त्रिंशः / चत्वारिंशः / पञ्चाशः। . नित्यं शतादेः / / 518 // शतादेर्गणात् पूरणेऽर्थे नित्यं तमद् प्रत्ययो भवति / एकशतस्य पूरण एकशततमः / एकशततमी। एकशततमं / एकसहस्रस्य पूरण एकसहस्रतम: / एकसहस्रतमी / एकसहस्रतमं / एककोटितमः / षष्ट्याद्यतत्परात्॥५१९॥ षष्ट्यादेरसंख्याया: परात् पूरणेऽर्थे नित्यं तमट् भवति / षष्टेः पूरण: षष्टितमः / षष्टेः पूरणी षष्टितमी। षष्टितमं / सप्ततितमः। अशीतितमः / नवतितमः / अतत्परादिति किं ? एकषष्टेः पूरण एकषष्टः / एकषष्टितमः / यत्र संख्या विद्यते तत्र विकल्पेन तमद् प्रत्ययो भवति / कतिपयानां पूरण: = कतिपयथ:, कतीनां पूरण: = कतिथ: बना। विंशति आदि से पूरण अर्थ में 'तमट्' प्रत्यय होता है // 516 // विंशते: पूरण: विंशति + ङस् = तम, विभक्ति का लोप होकर पूर्वोक्त सारी विधि से विंशतितमः, विंशतितमी, विंशतितमं / ऐसे ही त्रिंशत: पूरण: त्रिंशत् + ङस् तम, पूर्वोक्त विधि से त्रिंशत्तम: त्रिंशत्तमी, त्रिंशत्तमं बना। आगे चत्वारिंशत्तमः, पञ्चाशत्तम: इत्यादि / आगे नित्य शब्द ग्रहण किया गया है अत: यहाँ विकल्प समझना। आगे 'नित्य' शब्द किस सूत्र में है “नित्यं शतादेः” इस ५१८वें सूत्र में है। जहाँ संख्या है वहाँ विकल्प से तमट् प्रत्यय होता है। अनुबंध प्रत्यय के आने पर विंशति के 'ति' का लोप हो जाता है // 517 // अपि शब्द से शकार के अकार का भी लोप हो जाता है। अत: विंश रहा, लिंग संज्ञा के बाद सि विभक्ति में 'विंशः' बना। ऐसे ही त्रिंश:, चत्वारिंशः, पञ्चाश: इत्यादि।। शतादि गण से पूरण अर्थ में नियम से 'तमट्' प्रत्यय होता है // 518 // एकशतस्य पूरण: = एकशततमः, एकशततमी, एकशततमं, एकसहस्रस्य पूरण: = एकसहस्रतम:, एककोटितमः इत्यादि। षष्टि आदि असंख्या से परे पूरण अर्थ में नित्य ही तमट् प्रत्यय होता है // 519 // / षष्टेः पूरण: = षष्टितमः, षष्टितमी, षष्टितम, सप्ततितमः, अशीतितमः, नवतितमः / सूत्र में अतत्पर-संख्या से परे न हो ऐसा क्यों कहा ? एकषष्टे: पूरण: == एकषष्टितम: और 'ड' प्रत्यय से एकषष्ट: भी बन गया। मतलब जहाँ संख्या है वहाँ विकल्प से तमट् प्रत्यय होता है।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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