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________________ 160 कातन्त्ररूपमाला नरनारायणादिषु यदर्चितं पदं तत्पूर्वं न निपात्यते / नरश्च नारायणश्च नरनारायणै। उमामहेश्वरौ / काकमयूरौ / इत्यादि। ___मातुः पितर्यस्थ / / 445 / / तत्र द्वन्द्वे समासे पितरि उत्तरपदे मातृशब्दस्य ऋत अरादेशो भवति चकारादा च। माता च पिता च मातरपितरौ / मातापितरौ। पत्रे // 446 // पुत्रशब्दे उत्तरपदे द्वन्द्वविषये विद्यायोनिसम्बन्धिन ऋदन्तस्य आत्वं भवति। माता च पुत्रश्च मातापुत्रौ / एवं होतापुत्रौ / इति द्वन्द्वसमासः // कुम्भस्य समीपं / अन्तरायस्य अभावः / पूर्व वाच्यं भवेद्यस्य सोऽव्ययीभाव इष्यते // 447 // यस्य समासस्य पूर्वमव्ययं पदं वाच्यं भवेत्सोऽव्ययीभाव इष्यते। अव्ययानां स्वपदविग्रहो नास्तीत्यन्यपदेन विग्रह इति वचनाद् समीपस्य उपादेश: / अभावस्य निरादेशः / समासे कृते अव्ययानां पूर्वनिपात:। स नपुंसकलिङ्गः स्यात्।।४४८॥ सोऽव्ययीभावसमासो नपुंसकलिङ्गः स्यात् / अव्ययत्वादलिङ्गे प्राप्ते वचनमिदं / नर नारायण में जो अर्चित हो उसे पूर्व में रखने का नियम नहीं है / नरश्च नारायणश्च-नरनारायणौ, उमा च महेश्वरश्च-उमामहेश्वरौ, काकश्च मयूरश्च-काकमयूरौ इत्यादि। द्वंद्व समास में पितृ शब्द के आगे आने पर मातृ शब्द के ऋ को अर् आदेश हो जाता है // 445 // सूत्र में चकार से 'आ' आदेश भी हो जाता है। अत: माता च पिता चं-मातरपितरौ अथवा मातापितरौ बना। ___पुत्र शब्द के आने पर भी क्र को आ हो जाता है // 446 // पुत्र शब्द के उत्तरपद में रहने पर द्वंद्व समास में विद्या अथवा योनि का संबंध होने से ऋकार को 'आ' हो जाता है। माता च पुत्रश्च-माता पुत्रौ, होता च पुत्रश्च होतापुत्रौ बन गया। इस प्रकार से द्वंद्व समास हुआ। अब अव्ययीभाव समास को कहते हैं। कुम्भस्य समीपं, अन्तरायस्य अभाव:, ऐसा विग्रह है। जिस समास में पूर्व में अव्ययवाचक पद हो वह अव्ययी भाव समास है // 447 // अव्ययों का स्वपद से विग्रह नहीं होता इसलिये अन्य पद से विग्रह किया है इस नियम से यहाँ पर 'समीप' को 'उप' अव्यय आदेश होगा और अभाव को 'निर' अव्यय आदेश होगा। और समास के करने पर अव्ययों का पूर्व में निपात हो जाता है। अत: कुम्भ + ङस् उप + सि विभक्ति का लोप होकर 'उपकुम्भ' रहा। लिंग संज्ञा होकर विभक्ति आने से 'उपकुम्भ + सि' है। यह अव्ययीभाव समास नपुंसक लिंग ही होगा // 448 // इस समास में अव्यय की प्रधानता होने से अलिंग में प्राप्त था अत: नपुंसक लिंग ही रहा है।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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