________________ 158 कातन्त्ररूपमाला सहशब्दस्य सो वा भवति बहुव्रीहौ समासे / एवं सधर्मः / जनकेन सह वर्तते इति सजनकः / जनन्या सह वर्तते इति सजननि: / एवं सवधुः / गोरप्रधानस्येत्यादिना ह्रस्व: / अव्ययानां पूर्वनिपात: / युधि क्रियाव्यतिहारे इच्॥४३८ / ग्रहणप्रहरणबाधके युद्धे क्रियाव्यतिहारे बहुव्रीहिसमासात् इच् भवति / इचि पूर्वपदस्याकारः // 439 // इचि परे पूर्वपदस्याकारो भवति। दण्डैश्च दण्डैश्च प्रवृत्तं युद्धं दण्डादण्डि। एवं गदागदि / खड्गाखड्गि / केशाकेशि / मुष्टामुष्टि / कचाकचि / दक्षिणस्या: पूर्वस्याश्च दिशोर्यदन्तरालं सा विदिक् / विदिक तथा॥४४०॥ तथा विदिगभिधेये बहुव्रीहिज्ञेयः। सर्वनाम्नो वृत्तिमात्रे पूर्वपदस्य पुंवद्भाव: / दक्षिणपूर्वा / पश्चिमोत्तरा / दक्षिणपश्चिमा। उत्तरपूर्वा / इत्यादि। शुकश्च मयूरश्च / धवश्च खदिरश्च पलाशश्च / इति स्थिते पुत्र+टा, सह + सि है / विभक्ति का लोप होकर 'अव्ययानां पूर्वनिपात:' से सह का पूर्व में निपात होकर 'सहपुत्रः' बना अथवा सह को 'स' होकर 'सपुत्रः' बना। ऐसे ही जनकेन सह वर्तते–'सजनक:', धर्मेण सह वर्तते—'सधर्म:' / जनन्या सह वर्तते 'सजननी' बना “गोरप्रधानस्य” इत्यादि ४२६वें सूत्र से ह्रस्व होकर 'सजननि:', वध्वा सह वर्तते 'सवधुः' बना। युद्ध क्रिया के व्यतिहार में इच् प्रत्यय होता है // 438 // ग्रहण प्रहरण से बाधा युक्त युद्ध क्रिया में क्रिया व्यतिहार में बहुव्रीहि समास से 'इच्' प्रत्यय होता है। क्रिया व्यतिहार किसे कहते हैं ? परस्पर में प्रहार आदि की क्रिया को क्रिया व्यतिहार कहते हैं। जैसे दण्डैश्च दण्डैश्च प्रवृत्तं युद्धं-दण्ड + भिस् दण्ड + भिस् है विभक्तियों का लोप होकर ‘दण्ड-दण्ड' रहा / इच् प्रत्यय होकर १३६वें सूत्र से 'इवर्णावर्णयोर्लोप: स्वरे प्रत्यये ये च' सूत्र से अवर्ण का लोप होकर 'दण्डदण्डि' रहा पुन: इच् प्रत्यय के परे पूर्वपद को आकार हो जाता है // 439 // ___इस सूत्र से 'दण्डादण्डि' बना, लिंग संज्ञा होकर विभक्ति आकर वारिवत् रूप चलने से ‘दण्डादण्डि' बन गया। ऐसे ही गदाभिश्च गदाभिश्च प्रवृत्तं युद्धं-गदागदि। खड्गैश्च खड्गैश्च प्रवृत्तं युद्धं-खड्गाखड्गि / इसी प्रकार से केशाकेशि', मुष्टामुष्टि, कचाकचि बन गये। ___ दक्षिणस्या: पूर्वस्याश्च दिशोर्यदन्तरालं सा विदिक् ऐसा विग्रह हुआ दक्षिणा + ङस् पूर्वा + ङस् विभक्ति का लोप होकर 'दक्षिणापूर्वा' रहा विदिशा के वाच्य में बहुव्रीहि समास होता है // 440 // सर्वनाम के समास में पूर्वपद को पुंवद्भाव हो जाता है। अत: 'दक्षिणपूर्वा' बना पुन: लिंग संज्ञा होकर सि विभक्ति आकर रमावत् रूप चलेंगे। अत: “दक्षिणपूर्वा" बन गया। पश्चिमस्याश्च उत्तरस्याश्च दिशोर्यदन्तरालं-सा पश्चिमोत्तरा। दक्षिणस्याश्च पश्चिमस्याश्च दिशोर्यदन्तरालं-दक्षिणपश्चिमा। उत्तरस्याश्च पूर्वस्याश्च दिशोर्यदन्तरालं-उत्तरपूर्वा / इत्यादि / १.केशेषु केशेषु गृहीत्वा इदं युद्ध प्रवृत्तं ऐसा विग्रह है।