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________________ 150 कातन्त्ररूपमाला अथ समास उच्यते। पान्तु वो नेमिनाथस्य पादपद्मारुणांशवः / यस्य पादौ समानम्य शीतीभूता जगज्जनाः / / 1 / / समास: क: ? नाम्नां समासो युक्तार्थः // 420 / / नाम्नां युक्तार्थ: समासो भवति। वस्तुवाचीनि नामानि मिलितं युक्तमुच्यते / समासाख्यं तदेतत्स्यात्तद्धितोत्पत्तिरेव च // 1 // चकारबहुलो द्वन्द्वः स चासौ कर्मधारयः / यत्र द्वित्वं बहुत्वं च स द्वन्द्व इतरेतरः // 2 // पदयोस्तु पदानां वा विभक्तिर्यत्र लुप्यते / स समासस्तु विज्ञेयः पुराणकविवाक्यतः // 3 // अथ समास प्रकरण श्लोकार्थ-जिनके चरण युगल को नमस्कार करके जगत् के प्राणी शांति को प्राप्त हो चुके हैं ऐसे श्री नेमिनाथ भगवान् के चरण कमल की अरुण किरणें हम लोगों की रक्षा करें // 1 // समास किसे कहते हैं ? नाम के अनेक पदों का मिला हुआ अर्थ समास कहलाता है // 420 // . श्लोकार्थ-वस्तुवाची अनेक नामों का मिलना-युक्त होना 'समास' कहलाता है और यह समास तद्धित की उत्पत्ति ही है // 1 // __जिसमें चकार बहुल हो उसे 'द्वन्द्व' कहते हैं। जिसमें ‘स चासौ' का प्रयोग होता है उसे 'कर्मधारय' कहते हैं। जिसमें दो और बहुत पद होते हैं वह इतरेतर द्वन्द्व है // 2 // जिसमें दो पद अथवा बहुत से पदों की विभक्ति का लोप किया जाता है उसे कवियों के द्वारा कथित 'समास' समझना चाहिए // 3 // उस समास के चार भेद हैं। तत्पुरुष, बहुव्रीहि, द्वन्द्व और अव्ययीभाव। तत्पुरुष किसे कहते हैं ? जिसमें उत्तर पद का अर्थ प्रधान हो वह तत्पुरुष कहलाता है। बहुव्रीहि किसे कहते हैं ? जिसमें अन्य पद का अर्थ प्रधान हो वह बहुव्रीहि समास है। द्वन्द्व किसे कहते हैं ? जिसमें सभी पदों का अर्थ प्रधान हो वह द्वन्द्व है। अव्ययीभाव किसे कहते हैं ? जिसमें पूर्व में अव्यय पद का अर्थ प्रधान हो वह अव्ययीभाव समास है। इस प्रकार से तुल्य रूप से समास के चार भेद हैं। उनका यहाँ क्रम से वर्णन किया जाता है। सुखं प्राप्तः, गुणान् आश्रित: ऐसा विग्रह है। 1. अर्थात् दोनों पदों में च का प्रयोग है जैसे माता च पिता च /
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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